धर्म-मजहब ऐसी कड़ियां हैं, जो इंसान को इंसान से जोड़ती हैं. किसी को नमाज से सुकून मिलता है, तो किसी को पूजा से शांति मिलती हैं. किसी का अकीदा खुदा को बिना देखे मानना हैं, तो किसी की आस्था भगवान की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करने में है. यूं तो यहां चंद दूरी तय करने पर भाषाएं व रंग-रूप बदल जाते हैं, पर इन सब से बढ़कर जो हम सब में हैं, वह यह हैं कि हम अनेकता में एकता को मानने वाले लोग हैं और यही खासियत है मेरे मादरे वतन हिंद की, लेकिन बीते कुछ सालों से हमारी यह पहचान खतरे में आ गयी हैं.
हम एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन होते जा रहे हैं, जिसका कारण राजनीति है और हम जैसे लोग, जो कुछ नहीं जानते अपने मजहब-धर्म के बारे में, मरने व मारने को तैयार हो जाते हैं, जबकि हम सब को देश के मूल मुद्दों- रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा, सड़क, आर्थिकी वगैरह की चिंता करनी चाहिए, उसके लिए एकजुट होना चाहिए.
मोहम्मद अली, वासेपुर, धनबाद