झारखंड में चल रहा एक भी नर्सिग या पैरामेडिकल संस्थान एआइसीटीइ से अनुमोदित नहीं हैं, भले ही वो रांची के रिम्स या धनबाद के पीएमसीएच के तहत चल रहे पाठय़क्रम हों. इन संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा है. राज्य सरकार का इस मसले पर ठंडा रुख, अपने में बड़ा सवाल है. मंगलवार को पीएमसीएच, धनबाद के छात्र तो काफी आंदोलित रहे.
इनके प्रैक्टिकल नहीं करने से अस्पताल के ढेरों काम बाधित रहे. प्रैक्टिकल के नाम पर संस्थानों को अध्ययनरत छात्रों का सहयोग एक जरूरत की भरपाई कर देता है. लेकिन, इन संस्थानों में अपने इन छात्रों के लिए कितनी चिंता है? इन संस्थानों के प्रमुख इसे मुख्यालय का मामला कह कर टालते रहे हैं. ऐसे छात्र राज्य स्तर पर पहले से आंदोलित रहे हैं.
अनुबंधित चिकित्सकों तथा पैरामेडिकल कर्मियों की सेवा नियमित करने के अपने फैसले के कारण चर्चित प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह ने इनके लिए स्टाइपेंड कीभी घोषणा की थी जो अमल में नहीं आयी. एक बार मिलने गये इन फरियादी छात्रों को मुख्यमंत्री के पास जाने नहीं दिया गया. दरअसल यही इन छात्रों के प्रति व्यवस्था का रुख हैं. गत वर्ष मई में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक फैसला आया था जिसमें कहा गया था कि एमबीए तथा एमसीए जैसे पाठय़क्रमों के संचालन के लिए एआइसीटीइ के अनुमोदन की जरूरत नहीं.
उलझन कहें या दुविधा की शुरुआत इसी के बाद हुई और अगले ही माह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक परिपत्र जारी कर देश भर के विश्वविद्यालयों को तकनीकी और व्यावसायिक डिग्री देनेवाले और कॉलेजों को अगले आदेश तक मान्यता देने से रोका था. लेकिन इसमें पहले से चल रहे संस्थानों में ऐसे पाठय़क्रमों के अनुमोदन पर रोक की बात कहां कही गयी थी?
रोक भले ही लगा दी गयी, पर कुकुरमुत्ते की तरह ऐसे संस्थान देश भर के कोने-कोने में खुलने बंद नहीं हुए. इनके धुआंधार प्रचार के जाल से नौनिहालों को बचाने के लिए सरकारी तंत्र भौंहें तो तान सकता है, पर जब तंत्र के ही भीतर लापरवाही बरती जा रही हो जिसके शिकार निरीह छात्र हो रहे हों तो यह भी अंधेरगर्दी का ही एक रूप है. आखिर रफूगर की पैबंद कौन लगायेगा?