स्मृति ईरानी के बहाने आज यह चर्चा करने का अच्छा अवसर है कि राजनेताओं के लिए शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता है या नहीं? हालांकि यह विवाद कांग्रेसियों के वैसे नकारात्मक तत्वों द्वारा शुरू किया गया है जिनका काम ‘राज’ के लिए विकासात्मक नीति बनाने के बजाय दूसरों के व्यक्तिगत जीवन पर कीचड़ उछालना रहा है और जिसका खमियाजा इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ा है.
बहरहाल, मेरा मानना है कि राजनेताओं को न केवल अच्छी योग्यता के साथ पढ़ा होना चाहिए, बल्कि संबंधित जबावदेही के परिप्रेक्ष्य में उसके अंदर विशेष योग्यता भी होनी चाहिए. पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद में बैठनेवाले प्रत्येक जनप्रतिनिधि की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय होनी चाहिए. उसे विषय-विशेष के रूप में राजनीतिशास्त्र की जानकारी जरूर होनी चाहिए.
मंत्री पद पर जाने वाले व्यक्ति को संबंधित विभाग का अनुभव होना चाहिए. वातानुकूलित जीवन जीने वाला व्यक्ति, जिसने कभी खेत-खलिहान का नाम नहीं सुना हो, कभी भी किसानों के बहाये पसीने का अनुमान नहीं लगा सकता और न ही उनकी परेशानियों को समझ सकता है. ऐसे में वह कृषि मंत्री की भूमिका में आ जाए तो ही किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है. राजनीतिक-दृष्टि किसी की कितनी भी व्यापक क्यों न हो, पर अपने जीवन में जिसने कभी विश्व-भूगोल नहीं पढ़ा हो और ‘सामरिक’ शब्द का अर्थ नहीं जाना हो, उन्हें अचानक विदेश मंत्री की जबावदेही सौंप दी जाए तो देश की विदेश-नीति का क्या होगा? हिंदुस्तानी लोकतंत्र कोई प्रयोगशाला नहीं जहां अनुभवहीन व अयोग्य राजनीतिज्ञों को देश की तकदीर लिखने के लिए ट्रायल पर छुट्टा छोड़ा जाए.
डॉ कृष्ण मुरारी सिंह, मैथन, धनबाद