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लॉ बोर्ड बने सकारात्मक संस्था
फिरोज बख्त अहमद चांसलर, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी firozbakhtahmed08@gmail.com भारत में आज यदि मुस्लिमों की छवि में गिरावट आयी है, तो उसमें अन्य कारणों के अतिरिक्त एक मुख्य कारण है आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड. आये दिन जब भी मुस्लिम संप्रदाय के सर पर मीडिया द्वारा तलवार लटकायी जाती है एवं उनके वर्चस्व […]
फिरोज बख्त अहमद
चांसलर, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी
firozbakhtahmed08@gmail.com
भारत में आज यदि मुस्लिमों की छवि में गिरावट आयी है, तो उसमें अन्य कारणों के अतिरिक्त एक मुख्य कारण है आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड. आये दिन जब भी मुस्लिम संप्रदाय के सर पर मीडिया द्वारा तलवार लटकायी जाती है एवं उनके वर्चस्व को मटियामेट किया जाता है, तो उसमें मुख्य भूमिका लॉ बोर्ड की होती है. इस बोर्ड के अधिकतर सदस्य कट्टरपंथी होते हैं. जिस तरह से इस्लामी मामलों को ये कुरान की लीक से हटकर और अपने हिसाब से पेश करते हैं, उससे इस्लाम की छवि धूमिल हुई है.
लोग समझते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक ऐसी संस्था है, जो मुस्लिम समुदाय के कानून की रक्षा करती है, जिसमें विशेष रूप से उनके धर्माधिकार शामिल हैं. एक सामान्य मुसलमान यह समझता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उसके हितों की रक्षा कर रहा है, जबकि सत्य इसका उल्टा ही है. बोर्ड के सदस्य जब कभी भी टीवी बहसों में दिखायी दिये, सदा ही उल्टा बोले और लोगों पर उसका ऐसा असर हुआ कि वे समझने लगे कि मुसलमान कौम झगड़े-फसाद वाली कौम है और इसके सदस्य इसी प्रकार से लड़ते-झगड़ते रहते हैं.
यही कारण है कि आज मुस्लिमों को इस प्रकार के व्यवहार के कारण आतंकवाद से ग्रसित समझा जाता है. मुस्लिमों की इस छवि के लिए बोर्ड के सदस्य न केवल पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं, बल्कि गुनहगार भी हैं, क्योंकि वे इस्लाम की एक दूषित तस्वीर पेश कर रहे हैं.
किस प्रकार से पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिमों को बदनाम किया है और उनकी नकारात्मक छवि बनायी है, इसका उदाहरण हमें इस घटना से भी मिल जाता है कि जब उच्चतम न्यायालय ने सभी धर्मों से कुछ समय पूर्व समान आचार संहिता के बारे में पूछा कि उनका क्या विचार है, तो सबसे पहले इसका विरोध लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना वली रहमानी ने किया.
हालांकि, दूसरे धर्मावलंबियों से भी यही प्रश्न किया गया था, मगर उनमें तो इस प्रकार की हलचल देखने में नहीं आयी. पर्सनल लॉ बोर्ड के बस का यह भी नहीं कि एक मॉडल निकाहनामा ही तैयार कर दे. जो लोग, इतने छोट-छोटे कार्य नहीं कर पाते, आखिर वे भारत के 30 करोड़ मुस्लिमों को क्या भला कर पायेंगे. इसके सदस्यों में कुछ को छोड़कर कोई बहुत अधिक काबिल भी नहीं हैं.
हाल ही में जो छीछालेदर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में मौलाना सलमान नदवी को लेकर हुई है, उससे बोर्ड पर से विश्वास तो घटा है ही, साथ ही मुस्लिमों के स्वाभिमान को भी बट्टा लगा है. बोर्ड के अंदर न तो एकता है और न ही समझदारी की कोई बात दिखायी देती है. पिछले दिनों जब मौलाना सलमान नदवी ने मंदिर-मस्जिद प्रकरण का सुलझाने के संबंध में यत्न किया, तो उन पर कई आरोप लगा दिये गये.
मौलाना सलमान नदवी का केवल इतना ही कहना था कि अब इस मंदिर मस्जिद फसाद को बड़ा समय हो गया है, अतः इसे समाप्त करने के लिए अब यहां पर मुस्लिमों की रजामंदी से मंदिर बना लेना चाहिए और कुछ दूरी पर शाही बाबरी मस्जिद का भी निर्माण हो. इस फसाद को निबटाने के लिए जो प्रयत्न उन्होंने किया, पर्सनल लॉ बोर्ड वालों ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने श्रीश्री रविशंकर से सांठगांठ की है.
यह भी सुना गया कि मौलाना नदवी ने राम मंदिर के बदले एक विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 5,500 करोड़ रुपये मांगे थे. इस बात में साजिश की दुर्गंध आती है. लॉ बोर्ड वालों का कहना है मौलाना सलमान नदवी को श्रीश्री रविशंकर से बात करने से पहले बोर्ड के अंदर बात करनी चाहिए थी.
आज जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना सलमान पर आरोप लगा रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि बोर्ड के कुछ सदस्यों ने इससे पूर्व भी मंदिर-मस्जिद समस्या को सुलझाने के लिए मुंबई के ताजमहल में पुरी मठ के शंकराचार्य से मिले थे, जिनमें मुख्य नाम सैयद कासिम रसूल इलियास का था. इसमें कोई दो राय नहीं कि इलियास और उनके साथियों ने एक अच्छा प्रयास किया था, जो सफल नहीं हो पाया और उस दौर में भी लोगों ने लॉ बोर्ड के सदस्यों को नहीं बख्शा.
तब भी कुछ कट्टरवादियों ने कहा था कि लॉ बोर्ड के सदस्य शंकराचार्य से कुछ सांठगांठ कर रहे हैं. मुस्लिमों के साथ एक बड़ी विडंबना की बात है कि जब भी उनमें से कोई व्यक्ति किसी भी हिंदू-मुस्लिम समस्या के समाधान को लेकर कोई प्रयास करता है, तो तुरंत कौम की ओर से आवाज आती है कि फलां-फलां व्यक्ति कौम का सौदा कर रहा है, उम्मत के साथ गद्दारी कर रहा है, आदि. इससे छवि नकारात्मक बनती है.
अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन साल 1973 में हैदराबाद में हुआ था और आज इसके 251 सदस्य हैं, जो मुस्लिम समाज के विभिन्न तबकों से आते हैं. पिछले दिनों देखा गया है कि तीन तलाक के मामले में बोर्ड का रोल बड़ा नकारात्मक रहा और मुस्लिम महिलाओं को एक ही बैठक में तीन तलाक की यातना से छुटकारा दिलाने के बजाय वे उच्चतम न्यायालय के ही पीछे पड़ गये कि वह मुस्लिम मामलों में बेजा दखल दे रहा है.
यह तो उच्चतम न्यायालय की मेहरबानी थी कि जिसने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के नर्क से छुटकारा दिलाया. समय की आवश्यकता है कि भारतीय मुस्लिम मिल-बैठकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को एक सकारात्मक संस्था बनाएं, ताकि तीन तलाक, बाबरी मस्जिद, परिवार नियोजन, पर्दा आदि समस्याओं पर इस्लाम की जगहंसाई न हो.
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