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अपना देश तो अपना ही है
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com लंबे-लंबे पेड़, हरियाली से भरे मैदान, बर्फ से लदी पहाड़ों की चोटियां, कूड़ेदानों के आसपास भी कूड़े का नामोनिशान नहीं, सड़कें बेहद साफ-सुथरी. झीलें और नदियां ऐसी कि तल में तैरती मछलियां दिख जाएं. आप सोचेंगे क्या किसी परीदेश की बात कर रही हूं. नहीं, यह देश है स्विट्जरलैंड. छोटा […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com
लंबे-लंबे पेड़, हरियाली से भरे मैदान, बर्फ से लदी पहाड़ों की चोटियां, कूड़ेदानों के आसपास भी कूड़े का नामोनिशान नहीं, सड़कें बेहद साफ-सुथरी. झीलें और नदियां ऐसी कि तल में तैरती मछलियां दिख जाएं. आप सोचेंगे क्या किसी परीदेश की बात कर रही हूं. नहीं, यह देश है स्विट्जरलैंड. छोटा सा देश, सत्तर लाख की आबादी वाला. यहां अपने भारत की तरह कोई स्वच्छता अभियान भी नहीं चल रहा है.
लोग अपने आप ही कूड़ा न फैलाने के प्रति काफी जागरूक हैं. यहां तक कि कोई और फैलाये, तो उसे भी कूड़ेदान में फेंकने से परहेज नहीं करते. पिछले दस सालों से यहां आ रही हूं, मगर इस देश की सफाई में कभी कोई कोताही नहीं देखी. कल ही मुझसे किसी ने कहा कि स्विट्जरलैंड चाहे जितने दिन बाद आएं, यहां के लोगों की आदतें नहीं बदलतीं. वे सफाई पसंद पचास साल पहले भी थे और आज भी हैं.
पिछले दस सालों से यह भी महसूस करती हूं कि यहां अपने देश की तरह आपसी बातचीत जैसी कोई चीज नहीं दिखती. आप सड़क पार कर रहे हैं, पैदल चल रहे हैं, तो कोई भी गाड़ी रुककर आपको रास्ता देगा.
मगर हो सकता है कि किसी के पड़ोस में रहते बहुत साल हो गये हों, लेकिन उनमें कभी बातचीत न हुई हो. यहां की बालकोनियों में शायद ही कोई दिखाई देता है. सड़कों पर बहुत कम लोग चलते दिखते हैं. और उनमें भी आपस में कोई बातचीत नहीं होती. अपने यहां जैसे सड़क चलते भी कोई रुककर आंटीजी कहता है. कोई सब्जी फल वाला माताजी या बहनजी कहकर पुकारता है. दुकानदारों से लेकर तमाम लोगों से राजनीति से लेकर धर्म तक पर बहस होने लगती है.
बस या गाड़ी में बैठकर अपरिचित भी घर-परिवार की बातें करने लगते हैं, दूसरे के बारे में जानना और अपने बारे में कहना, ऐसी आत्मीयता स्विट्जरलैंड में कहीं नहीं दिखायी देती. हालांकि, वहां अपराध बहुत कम होते हैं. चोरी-चकारी की घटनाएं भी बहुत कम सुनायी देती हैं. कोई चीज कहीं भूल जायें, कोई चीज बाहर रखी हो, तो उसके खोने या चोरी हो जाने का भी कोई खतरा नहीं. काश कि ये बातें अपने देश के लोग सीख पाते और वहां के लोग भी हमारे यहां की आत्मीयता को समझ सकते.
सिर्फ साल में एक दिन मई के आखिरी शुक्रवार पड़ोसी दिवस होता है. जिसमें पड़ोसी आपस में मिलते हैं. खाते-पीते हैं और घर चले जाते हैं, अगले साल मिलने के लिए. यह भी कैसी विडंबना है कि पड़ोसियों से मिलने के लिए एक दिन का समय है साल में. बाकी जैसे साल के तीन सौ चौंसठ दिन पड़ोसी भी वैसे ही अपरिचित बने रहते हैं, जैसे कि दूसरे लोग. अकेलापन इतना ज्यादा है कि जिस देश को दुनिया का सबसे खुशहाल देश कहा जाता है, वहां बड़ी संख्या में लोग अवसाद का शिकार होते हैं और उनके इलाज पर सरकार को अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं.यहां आकर ही यह महसूस होता है कि अपना देश हमेशा सबसे अच्छा लगता है.
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