जब आदमी भीड़ बन जाता है तो लगता है उसके अंदर इंसानियत खत्म हो गयी हो. भीड़ में शामिल शख्स जानवर का रूप लेकर किसी की हत्या तक करने तक उतारू हो जाती है. भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, इसलिए आदमी भीड़ में शामिल होकर अपराध करने से नहीं डरता.
हाल ही में देश के कुछ प्रदेशों में भीड़ ने कई लोगों की जान महज अफवाहों के कारण ले ली या पीटकर अधमरा कर दिया. हमारा संविधान हर नागरिक को स्वतंत्रता और जीने का मौलिक अधिकार देता है, लेकिन किसी को भी सजा देने का अधिकार नहीं देता. अगर कोई दोषी है तो उसे सजा देने का अधिकार केवल न्यायालय को है. इस तरह की घटनाओं से हमारी इंसानियत पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है.
नेयाज अहमद, महनार (वैशाली)