मौसम विभाग ने अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य (लंबी अवधि के औसत का 97 फीसदी) रहने का अंदाजा लगाया था. यह आशा जगानेवाली सूचना थी, लेकिन जुलाई के दूसरे हफ्ते तक हुई बारिश के आंकड़े एक अलग ही स्थिति का संकेत कर रहे हैं.
जून की शुरुआत से जुलाई के पहले हफ्ते तक देश में सामान्य से आठ फीसदी कम बारिश रिकाॅर्ड की गयी है. इस कारण पिछले साल के मुकाबले धान की फसल की रोपाई-बुआई में 14 फीसदी और दलहन की बुवाई के रकबे में 19 फीसदी की कमी आयी है. धान उत्पादन के लिहाज से अहम माने जानेवाले राज्य छत्तीसगढ़, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में मॉनसूनी बारिश में विशेष कमी आयी है. सो, बुवाई-रोपाई पर भी बड़ा असर पड़ा है.
गुजरात तथा महाराष्ट्र में कपास की खेती प्रभावित हुई है और मध्य प्रदेश में सोयाबीन की. देश के प्रमुख जलागारों में पानी का स्तर बीते 10 साल के औसत से नीचे है.
मौसम विभाग को उम्मीद तो है कि आनेवाले कुछ दिनों के भीतर बारिश के रंग-ढंग सुधरते हैं, तो खरीफ की फसल की रोपाई समुचित तौर पर हो सकती है, लेकिन सीमांत किसानों के लिए शुरुआती मॉनसूनी बारिश की कमी से पैदा हुई मुश्किल से उबरना आसान न होगा. एक तो सीमांत किसानों के लिए सिंचाई के साधनों के उपयोग पर आनेवाले खर्च को उठाना कठिन है और दूसरे, सिंचाई के साधनों का पर्याप्त विस्तार नहीं हो सका है. भारत में कुल फसली क्षेत्र का लगभग 60 फीसदी हिस्सा बारिश के पानी पर निर्भर है.
खाद्यान्न (चावल, गेहूं आदि) उत्पादन वाले फसली क्षेत्र का 48 तथा गैर-खाद्यान्न (जैसे कपास) उत्पादन वाले फसली क्षेत्र का 60 फीसदी हिस्सा बरसात के आसरे है. ज्यादातर सीमांत किसान वर्षा-सिंचित इलाके में ही रहते हैं. चूंकि हर साल खाद्यान्न का रिकाॅर्ड उत्पादन हो रहा है और खाद्य-भंडार भी समुचित मात्रा में है. सो, खाद्यान्न के मोर्चे पर अगर कोई कमी होती है, तो उससे निबटना आसान होगा, लेकिन एहतियाती उपाय करने होंगे. सरकार ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की घोषणा की है.
उम्मीद की जा सकती है कि बारिश की स्थिति में सुधार हुआ, तो किसान ज्यादा बड़े रकबे में खरीफ फसलों की बुवाई-रोपाई करेंगे. अगर ऐसा नहीं होता है, तो किसानों की आमदनी सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपायों पर विचार किया जाना चाहिए. देश के ज्यादातर किसान परिवार अपनी आमदनी का 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा भोजन खरीदने पर खर्च करते हैं. खेती से हासिल आय में कमी होने पर बहुत से परिवारों के लिए सेहत और शिक्षा पर होनेवाले खर्चे में कटौती की मजबूरी है.
ऐसे में समय रहते सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के साथ ग्रामीण रोजगार योजना सरीखे वैकल्पिक उपायों पर आधारित कार्य-योजना बनानी चाहिए, ताकि जरूरत के मुताबिक फौरी तौर पर कम बारिश की चुनौती का सामना किया जा सके.