पीयूष पांडे
व्यंग्यकार
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देश में कई लोगों को अब भी पूरी तरह साफ नहीं है कि फीफा राष्ट्रीय फूफाओं का कोई संगठन है या फुटबॉल का अंतरराष्ट्रीय फेडरेशन. वे बस इसलिए फीफा-फीफा कर रहे हैं, क्योंकि दूसरे लोग कर रहे हैं. फीफा में भले भारतीय टीम नहीं खेल रही, लेकिन भारतीयों की दिलचस्पी का आलम यह है कि कई हनीमून जोड़े हनीमून के लिए रूस पहुंच गये हैं. एक पंथ दो काज.
फीफा कप से हिंदुस्तान को कई फायदे हुए हैं. पहला, बेगानी शादी में सिर्फ अब्दुल्ला नहीं, बल्कि पूरा देश दीवाना है और इससे सरकार ने राहत की सांस ली है.
कोई आंदोलन, कोई धरना-प्रदर्शन नहीं हो रहा. सब शायद वर्ल्ड कप खत्म होने तक के लिए टाल दिये गये हैं. वैसे भी धरने-प्रदर्शन का क्या है? सौ-दो सौ यार जुटे, जलेबी-कचौड़ी खायी और बैठ गये किसी रेल की पटरी पर. ज्यादा उत्साह हुआ तो एक-आध पटरी उखाड़ दी, लेकिन- फुटबॉल वर्ल्ड कप चार साल में एक बार होता है और भारतीय वक्त की कद्र करना जानते हैं.
फीफा कप का एक फायदा यह भी हुआ है कि चार आखर फुटबॉल के पढ़कर बंदे पंडित हो लिये हैं.
जिसने कभी किसी खिलाड़ी का नाम तक नहीं सुना हो, वह बताता मिल जायेगा- ‘यार, कल नेमार ने जैसा हेडर मारा, वो वन ऑफ दे बेस्ट था वर्ल्ड कप का.’ कोई कहते हुए मिल जायेगा- ‘अर्जेंटीना ने जैसा बकवास खेला है, वैसा वर्ल्ड कप हिस्ट्री में कभी नहीं दिखा. काश मैराडोना भी मैदान में होता!’
वैसे एक फायदा हुआ है कि कुछ बच्चे अचानक फुटबॉल खेलने लगे हैं, तो फुटबॉल की बिक्री बढ़ गयी है. कुछ मां-बाप को अपने बच्चों में नेमार, रोनाल्डो और मेसी दिखने लगा है, तो वे उन्हें फुटबॉल कोचिंग सेंटर में भर्ती करा आये हैं.
कुछ दिन बाद यही मां-बाद क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान बच्चों को क्रिकेट कोचिंग करायेंगे और फिर ओलिंपिक के वक्त स्विमिंग कोचिंग में यह सोचते हुए दाखिल करायेंगे कि उनके बच्चे में फेल्प्स बनने की पूरी संभावना है.
इसमें शक नहीं कि हम हिंदुस्तानी महाज्ञानी हैं. लेकिन हमारा ज्ञान आयोजनात्मक ढर्रे के मुताबिक चलता है. मतलब जैसा आयोजन वैसा ज्ञान. हमारे भीतर एक चिप लगी हुई है, जिससे खास आयोजन के वक्त हमारे भीतर का एंटीना वातावरण की तरंगों को पकड़कर खुद ही ज्ञान अर्जित कर लेता है.
क्रिकेट से लेकर इकनॉमिक्स और फुटबॉल से लेकर राजनीति तक, हर मुद्दे पर हम बिंदास चर्चा कर सकते हैं. टीवी न्यूज एंकर इस महाज्ञानी समुदाय के प्रणेता हैं. आज हर शख्स इतना ज्यादा ‘रायजादा’ है कि वह एक्सपर्ट को भी राय देता है. पान की गुमटी चलानेवाला विराट कोहली को समझा सकता है कि उसे सीधे बल्ले से क्यों खेलना चाहिए.
अभी देश का ध्यान फुटबॉल पर है, तो ज्ञान फुटबॉल का बढ़ा हुआ है. जल्द चुनाव आने हैं. तब देखियेगा कि देश में कितने पॉलिटिकल पंडित पैदा होते हैं. यह धरा महाज्ञानियों की धरा है. गूगल को भी चाहिए कि वह हमें नमन करे!