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बुराड़ी की अस्वाभाविक मौतें!
II सुभाष गाताडे II सामाजिक कार्यकर्ता subhash.gatade@gmail.com किसी खाते-पीते परिवार के सभी सदस्य (जिसमें तीन पीढ़ी के लोग शामिल हों), जो परिवार में एक बेटी की शादी की तैयारी में व्यस्त हों, जिनका व्यवहार तमाम पड़ोसियों से बिल्कुल सामान्य रहता आया हो और जो किसी आर्थिक परेशानी से भी नहीं गुजर रहे हों, किसी सुबह […]
II सुभाष गाताडे II
सामाजिक कार्यकर्ता
subhash.gatade@gmail.com
किसी खाते-पीते परिवार के सभी सदस्य (जिसमें तीन पीढ़ी के लोग शामिल हों), जो परिवार में एक बेटी की शादी की तैयारी में व्यस्त हों, जिनका व्यवहार तमाम पड़ोसियों से बिल्कुल सामान्य रहता आया हो और जो किसी आर्थिक परेशानी से भी नहीं गुजर रहे हों, किसी सुबह मृत पाये जायें और वह भी एक ही अंदाज में फांसी लगाये, तो बड़ी-से-बड़ी गुप्तचर एजेंसी के लिए भी इस बात का आकलन करना मुश्किल हो जाता है कि माजरा क्या है?
दिल्ली के बुराड़ी के भाटिया परिवार के 11 सदस्यों की अस्वाभाविक मौत ऐसा ही रहस्य बनी हुई है. मृतकों में 78 साल की दादी और 15 साल के दो बच्चों के अलावा दो भाई, उनकी पत्नियां, उनकी बहन तथा उसकी बेटी शामिल हैं.
परिवार के करीबी सदस्य कहते हैं कि यह हत्या है और अपनी नाकामी छिपाने के लिए पुलिस की तरफ से आत्महत्या (किसी गुरु के प्रभाव में आकर उठाये गये कदम) की बात की जा रही है. एक संगठन ने इसकी सीबीआई जांच की भी मांग भी की है. दूसरी तरफ, पुलिस उस स्थान से बरामद एक नोटबुक के आधार पर कह रही है कि परिवार का एक सदस्य ललित (45 साल) मानसिक संभ्राति/उन्माद/पैरानोइया का शिकार था और जिसे अक्सर आभास होता था कि दस साल पहले गुजर गये उसके पिता उससे ‘बातें’ करते हैं.
मुमकिन है कि ‘मोक्ष’ के लिए उसने ही बाकियों को प्रेरित किया हो! हालांकि, मृतकों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसी बात सामने नहीं आयी है कि उनके साथ जबर्दस्ती की गयी हो. जाहिर है, जांच के बाद ही समूचे देश का ध्यान आकर्षित करनेवाली इस घटना की सच्चाई सामने आयेगी. तभी यह पता चलेगा कि क्या यह सभी आत्महत्याएं ही हैं, या फिर आत्महत्याएं तथा हत्याएं दोनों का तत्व इसमें शामिल है.
अगर हम मनोवैज्ञानिकों की बातों पर गौर करें, तो उनके मुताबिक सामूहिक आत्महत्या की ऐसी घटनाओं में परिवार या समूह का एक सदस्य लीडर की भूमिका में आ जाता है और वह बाकी सदस्यों को इसके लिए प्रेरित करता है.
इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि ललित बीच-बीच में मौन व्रत धारण कर लेता था और सभी से लिखकर संवाद करता था. यहां तक कि अपनी दुकान पर आनेवाले ग्राहकों के साथ भी वह लिखित रूप में बात करता था, इस संभावना से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता. पुलिस के मुताबिक, वहां बरामद कापी में जनवरी से ही कुछ-न-कुछ लिखा जाता रहा है, जिसमें इस प्रसंग का पूरा विवरण दिया गया है कि क्या-क्या कदम उठाने हैं.
एक अग्रणी अखबार से बात करते हुए जाने-माने मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ समीर मल्होत्रा ने कहा कि ऐसे किसी हत्या-आत्महत्या वाले प्रसंग में जहां एक परिवार शामिल हो, हमें उसमें निहित सामाजिक और आर्थिक कारणों की भी पड़ताल करनी होगी. उनका कथन है- ‘अगर यह कहा जाये कि यह आत्महत्या का मामला है, तो निश्चित ही समूचा परिवार बेबसी के प्रचंड दौर से गुजरा होगा और उसने महसूस किया होगा कि अब पीछे लौटने का रास्ता नहीं है.’
सामूहिक मौतों का ऐसा प्रसंग भले ही भारत जैसे देश में शायद पहली बार सामने आया हो, मगर विकसित से विकसित देशों में भी किसी गुरु या किसी वरिष्ठ के आदेश पर सामूहिक आत्महत्या की घटनाओं का सामने आना बिल्कुल अपवाद नहीं है. मसलन, वर्ष 1997 में कैलिफोर्निया में ‘हेवेंस गेट’ नामक आध्यात्मिक किस्म के समूह के 39 सदस्यों ने एक साथ जहर पीकर आत्महत्या की थी, जिसमें समूह का संस्थापक भी शामिल था. सभी की लाशों पर प्लास्टिक के बैग भी मिले थे. वर्ष 1993 में वैको में ‘ब्रांच डेविडियंस’ नामक आध्यात्मिक समूह पर (जिस पर कई आपराधिक आरोप लगे थे) एफबीआई ने हमला किया.
हमले में चौतरफा लगायी गयी आग में बच निकलने की कोशिश में भाग रहे अनुयायियों को गोली मार दी गयी. इसमें 76 लोग मारे गये थे. 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध की सामूहिक आत्महत्या का सबसे बड़ा प्रसंग जोंसटाउन, गियाना में सामने आया (1978), जिसमें समूह के 900 सदस्यों ने- जिम जोंस के कहने पर, जो अपने आप को मसीहा कहता था और अपने अनुयायियों को उसने अपने वश में कर लिया था, सामूहिक आत्महत्या की थी.
आध्यात्मिक समूह अपने अनुयायियों के मन-मस्तिष्क को किस कदर नियंत्रित कर सकते हैं, उनके मन-मस्तिष्क पर कैसे नियंत्रण रखते हैं, यह हाल में दक्षिण एशिया में हुई हिंसक घटनाओं को केंद्र में रखकर भी समझा जा सकता है, जिसमें पाया गया कि अपने गुरु के सम्मोहन का शिकार अनुयायियों ने उन लोगों की हत्या करने में भी संकोच नहीं किया, जिन्हें वे न तो जानते थे न ही जिनसे उनकी कोई दुश्मनी ही थी.
आध्यात्मिक गुरु ओशो की सक्रियताओं पर केंद्रित एक डाॅक्युमेंटरी वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ हाल में जारी हुई, जो दिखाती है कि किस तरह ओशो की शिक्षाओं से प्रभावित तथा उनकी निजी सचिव मां आनंद शीला के करिश्मे के सम्मोहन में अमेरिका स्थित आश्रम में क्या-क्या विवादास्पद गतिविधियों को अंजाम दिया जाता रहा है, किस तरह वहां स्थापित कम्यून में हजारों बेघरों को नींद की दवाएं दी जाती रहीं या किस तरह उससे जुड़े लोग हत्याओं की साजिशों में भी संलिप्त पाये गये थे.
जाहिर है, हमारे समाज को अब इस बात की जरूरत है कि वह ऐसे लोगों के जाल से कैसे बचे. इसके लिए जागरूकता जरूरी है.
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