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धारा खो चुके विचार
भारतीय राजनीति में विचारों की धारा न जाने कहां खो गयी है. विचारधारा के नाम पर नयी पार्टी का गठन या गठबंधन विचारों की कुंठित अभिव्यक्ति का एक माध्यम बनता जा रहा है. राजनीतिक पार्टी से जुड़ा सबसे निचले स्तर का व्यक्ति, जिसे किसी राजनीतिक लाभ की अपेक्षा नहीं है, आज भी विचारधारा का वाहक […]
भारतीय राजनीति में विचारों की धारा न जाने कहां खो गयी है. विचारधारा के नाम पर नयी पार्टी का गठन या गठबंधन विचारों की कुंठित अभिव्यक्ति का एक माध्यम बनता जा रहा है.
राजनीतिक पार्टी से जुड़ा सबसे निचले स्तर का व्यक्ति, जिसे किसी राजनीतिक लाभ की अपेक्षा नहीं है, आज भी विचारधारा का वाहक है, लेकिन वह हमेशा ठगा हुआ महसूस करता रहा है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ एक विचारधारा को मानता है- अवसर का अधिकतम लाभ उठाना. जम्मू और कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की सरकार किसकी विचारधारा के अनुकूल है?
कर्नाटक में एक दूसरे की विपरीत विचारधारा वाले एक ही धारा में बहने लगे. झारखंड में झामुमो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ सत्ता का आनंद ले चुका है.
फिर भी विचारधारा की लड़ाई लड़ रहा है. ममता बनर्जी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं. आज कल उनके विचार भी धारा ढूंढ रहे हैं. यूपी में बुआ और बबुआ एक दूसरे की नजर उतार रहे हैं. जनता तो जनार्दन है, अब उसी से अपेक्षा है कि कोई नयी धारा बहाये.
दिलीप कुमार मिश्रा, इमेल से
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