बीते कुछ सालों में भारत ने वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन का असर कम करने के उपायों की दिशा में अहम उपलब्धियां हासिल की हैं. स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, जैव-एथेनॉल आदि) के उत्पादन, वितरण और उपभोग के ढांचे में हुए सकारात्मक बदलावों से प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता कुछ कम हुई है.
अगर बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को छोड़ दें, तो फिलहाल बिजली उत्पादन की कुल क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का भाग 20 फीसदी है. पिछले चार साल में यह हिस्सेदारी आठ फीसदी बढ़ी है. अगर प्रति व्यक्ति उपभोग को आधार बनायें, तो 2014 में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से देश में छह करोड़ लोगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता था.
आज इस तादाद में तकरीबन डेढ़ गुना इजाफा हो चुका है. पवन-ऊर्जा के उत्पादन के लिहाज से भारत दुनिया में पांचवें और सौर ऊर्जा उत्पादन में छठे पायदान पर है. हालिया चार सालों में सौर ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता में आठ गुना बढ़ोतरी हुई है, जबकि पवन ऊर्जा में बढ़त डेढ़ गुना रही है. बढ़वार की इस रफ्तार को देखते हुए यह उम्मीद बांधी जा सकती है कि नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से 2022 तक देश में 175 गीगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा.
उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए जरूरी बढ़ती ऊर्जा की मांग के लिहाज से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त बिजली बेहद अहम है. हमारी अर्थव्यवस्था के विकास की गति तेज है. साल 2000 की तुलना में अब हमें दोगुनी ऊर्जा की दरकार है. एक आकलन के मुताबिक पूरी दुनिया में 2040 तक ऊर्जा की मांग जितनी बढ़ेगी, उसमें लगभग एक-चौथाई हिस्सा अकेले भारत का होगा. ऐसे में सिर्फ जीवाश्म ईंधन पर भारत न तो निर्भर रह सकता है और न ही जरूरत को इस स्रोत से पूरा किया जा सकता है.
पचास फीसदी से ज्यादा की युवा आबादी के देश भारत के लिए अगले कई सालों तक रोजगार के नये-नये अवसरों के सृजन की चुनौती बरकरार रहेगी. इस संदर्भ में एक अच्छी बात यह है कि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और इस्तेमाल के बढ़वार में भी रोजगार की महती संभावनाएं हैं. जनवरी में भूतल परिवहन मंत्रालय ने कहा था कि देश में वैकल्पिक ईंधन का उद्योग एक हजार अरब रुपये का हो सकता है और जैव-एथेनॉल के उत्पादन के लिए गांवों में 1,500 औद्योगिक इकाइयां खड़ी करने की आवश्यकता है, जिससे 25 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारें आपस में सहयोग करने के साथ विभिन्न देशों के साथ भी सहभागिता की पहल कर रही हैं.
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी और निजी स्तर पर इस प्रयास के लिए जरूरी निवेश भी समय-समय पर उपलब्ध होता रहेगा. आखिरकार, स्वच्छ ऊर्जा का समुचित उत्पादन और उसकी उपलब्धता स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की आधारभूत शर्त है.