‘सबका साथ, सबका विकास- यह हमारी कार्य-संस्कृति का मंत्र है.’ ये शब्द नरेंद्र मोदी ने उम्मीद से बड़ी चुनावी जीत के बाद वडोदरा के लोगों को धन्यवाद देते हुए कहे. भारतीय संविधान, लोकतंत्र और लोक परंपराओं की सीख का हवाला देते हुए उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर को याद किया, जिनके जीवन में वडोदरा का खास महत्व रहा है. अगले दिन अपने दूसरे निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में पवित्र गंगा नदी की स्वच्छता के संकल्प को दुहराते हुए उन्होंने महात्मा गांधी का स्मरण किया.
इससे पहले मोदी की छवि हिंदुत्व एवं दक्षिणपंथी राजनीति के प्रतीक राजनेता की रही है. चुनाव अभियान में उनकी भाषा और भंगिमाएं भी उनकी इस छवि को पुख्ता कर रही थीं. परंतु, बड़ी विजय के बाद मोदी द्वारा अपने पहले दो भाषणों में आधुनिक भारत की दो अत्यंत महत्वपूर्ण विभूतियों का स्मरण उनके राजनीतिक वांग्मय के विस्तार का स्वागतयोग्य संकेत है. वडोदरा में भाजपानीत गठबंधन की विजय की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार चलाने के लिए उन्हें बहुत कुछ मिल चुका है, पर देश चलाने के लिए सभी को साथ लेकर चलने की जिम्मेवारी है.
मोदी के सामने पिछले कई प्रधानमंत्रियों की तरह न तो गठबंधन की मजबूरियां होंगी और न ही कामकाज में अड़ंगा डालने वाला मजबूत विपक्ष. आज माहौल उनके पक्ष में है, काम करने के मौके भरपूर हैं और मतदाताओं का पूरा भरोसा भी मिला है. इसलिए उम्मीद की जानी वे ‘अच्छे दिन’ के अपने वायदे को पूरा करेंगे और उसमें सवा अरब भारतीयों की न्यायपूर्ण हिस्सेदारी होगी. इसके लिए उन्हें देश के हर क्षेत्र, वर्ग और समूह की आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करना होगा. लोकतंत्र में कमजोर विपक्ष कोई अच्छी स्थिति नहीं होती.
आशा है कि बतौर प्रधानमंत्री वे विपक्ष के रचनात्मक सहयोग के आकांक्षी और सकारात्मक आलोचनाओं के प्रति संवेदनशील भी होंगे. देश के राजनीतिक इतिहास में शायद दो ही प्रधानमंत्री- जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी- स्वयं को एक मजबूत राष्ट्रीय नेता के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित कर सके थे. प्रचंड बहुमत के बावजूद राजीव गांधी ऐसा नहीं कर सके थे. उम्मीद है कि मोदी वैश्विक मंच पर भी भारत की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल होंगे.