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देशों के बीच रिश्ते सरकारें तय करती हैं, पर इन रिश्तों के निबाह का सुख-दुख नागरिकों के हिस्से में भी आते हैं. अफगानिस्तान में सात भारतीयों का अपहरण ऐसे ही सिलसिले की कड़ी है. अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अन्य कई देशों के साथ भारत भी सहयोग कर रहा है. परंतु, इस सहयोग के खतरे भी […]

देशों के बीच रिश्ते सरकारें तय करती हैं, पर इन रिश्तों के निबाह का सुख-दुख नागरिकों के हिस्से में भी आते हैं. अफगानिस्तान में सात भारतीयों का अपहरण ऐसे ही सिलसिले की कड़ी है. अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अन्य कई देशों के साथ भारत भी सहयोग कर रहा है. परंतु, इस सहयोग के खतरे भी हैं.

वहां की अस्थिरता और अशांति कभी हमारे दूतावास के कर्मचारियों को चपेट में ले लेती है, तो कभी वहां कार्यरत कंपनियों के कामगारों को. अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा बगलान इलाके में अपहृत सात मजदूरों में चार झारखंड के हैं, एक बिहार और दो केरल से. बिजली के उत्पादन और वितरण से जुड़ी एक भारतीय कंपनी के लिए ये मजदूर अफगानिस्तान में 2014 से काम कर रहे थे. यों उन्हें मुक्त कराने की कोशिश में विदेश मंत्रालय लगा हुआ है और अफगान सरकार ने भी भरोसा दिलाया है कि मजदूरों को जल्दी ही छुड़ा लिया जायेगा. लेकिन, इतने भर से संतोष नहीं किया जा सकता है. इस घटना से विदेशों में काम कर रहे हमारे श्रमिकों की सुरक्षा का सवाल एक बार फिर से मुखर हुआ है और इराक में मारे गये भारतीयों से जुड़ी यादें ताजा हो गयी हैं.

सरकार ने बहुत देरी के बाद संसद को इराक की घटना के बारे में बताया था और मारे गये मजदूरों के परिजन लंबे समय से इस आशंका में रहे कि वे मृतकों का अंतिम संस्कार भी कर पायेंगे या नहीं. मृत मजदूरों के परिवार को दी जानेवाली सहायता को लेकर भी केंद्र तथा पंजाब की सरकार के बीच तकरार चली थी. देश में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण जीविका की तलाश में हाल के सालों में देश से बाहर जोखिम भरी जगहों पर मजदूरों का जाना बढ़ा है. लिहाजा, उनकी सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी बढ़ी हैं. रिपोर्टों में बताया गया है कि इन मजदूरों को नौकरी के एवज में कर्ज लेकर बिचौलियों को मोटी रकम देनी पड़ती है.

जहां उन्हें भेजा जाता है, वहां काम और भुगतान से जुड़ी कोई गारंटी नहीं होती और अक्सर बड़ी बदहाली में काम करते हैं. जिस इलाके में भारतीयों को अगवा किया गया है, वहां बीते दो सालों में तालिबान ने अपनी सक्रियता बहुत तेज की है. हालांकि, अभी किसी गिरोह ने इस घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन शक की सूई तालिबान की ओर ही है. कुछ समय पहले चीन और भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए साथ मिलकर काम करने का मंसूबा बनाया है. संभव है कि ऐसे इरादों को बाधित करने के लिए इस अपहरण को अंजाम दिया गया हो. विभिन्न वजहों पर विचार करने के साथ सुरक्षा में चूक की आशंकाओं की जांच भी की जानी चाहिए. अफगानिस्तान में भारतीय कामगारों को छुड़ाने की कवायद इराक में बरती गयी लापरवाही जैसी नहीं होनी चाहिए.

उन्हें मुक्त कराने के प्रयासों की समुचित जानकारी परिजनों को दी जाती रहनी चाहिए. साथ ही, ऐसे श्रमिकों के काम तथा जीवन की हिफाजत से जुड़े इंतजाम पर नये सिरे से सोचने की भी बड़ी जरूरत है.

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