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असहिष्णुता का रुख

त्रिपुरा में जनादेश आते ही 25 साल के वामपंथी शासन के प्रतीकों पर हमला किया गया तथा लेनिन की प्रतिमा तोड़ दी गयी, जिसकी प्रतिक्रिया में कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मेरठ में भीमराव अांबेडकर, तमिलनाडु में पेरियार और केरल में गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया. सवाल है कि क्या लोकतांत्रिक समाज में […]

त्रिपुरा में जनादेश आते ही 25 साल के वामपंथी शासन के प्रतीकों पर हमला किया गया तथा लेनिन की प्रतिमा तोड़ दी गयी, जिसकी प्रतिक्रिया में कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मेरठ में भीमराव अांबेडकर, तमिलनाडु में पेरियार और केरल में गांधी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया. सवाल है कि क्या लोकतांत्रिक समाज में सत्ता हासिल करते ही प्रतीकों को हमेशा के लिए उखाड़ फेंक देना उचित है?
जाहिर है कि प्रतिमाएं तोड़ने से विचारधाराएं नहीं मरतीं. लोकतांत्रिक समाज में जनता द्वारा यह कदम उठाना सही नहीं हैं. मूर्तियां तोड़ने की यह परिपाटी असहिष्णुता का रुख दिखाती हैं. लोकतंत्र की बुनियादी शर्त हैं कि सभी विचारधाराओं को सम्मान मिलें. सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और इस पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए.
मुकेश कुमावत बोराज, इमेल से

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