II आलोक पुराणिक II
वरिष्ठ व्यंग्यकार
इसकी मूर्ति से उसे आफत है. उसकी मूर्ति से उसे आफत है. भूखा बंदा चोरी कर ले, उसे मार दिया जाये, किसी को आफत ना होती. बच्चों के अस्पताल में बच्चे मर जाएं, मां-बाप रोते हैं, सिस्टम में कहीं आफत न मचती. पर मूर्ति गिर जाये, तो बवाल है.
यूं किया जाये कि एक माॅडर्न आर्ट जैसा कुछ बनाया जाये. हंसिया हथौड़ा उस पार्टी का लिया जाये. हाथ उस पार्टी का लिया जाये. कमल उस पार्टी का लिया जाये.
झाड़ू उसकी ले ली जाये. सबको मिलाकर एक साथ रख दिजा जाये. कोई ना तोड़ेगा. पर, इस तरह की मिली-जुली माॅडर्न आर्ट से कन्फ्यूजन नहीं हो जायेगा क्या? वैसे बताइये, कन्फ्यूजन अभी नहीं है क्या? पक्के तौर पर कोई कह सकता है क्या कि 2019 में कौन कहां होगा? जी. तो फिर कला जनित कन्फ्यूजन चलने दीजिए. मार-तोड़ कम मचेगी.
लेकिन, झाड़ूवाला कहेगा कि झाड़ू ऊपर ही होनी चाहिए, झाड़ू के ऊपर हंसिया हथौड़ा नहीं होना चाहिए. इसी मारधाड़ पर हफ्ता खींच देंगे टीवी वाले. यह हल्ला कास्ट इफेक्टिव पड़ेगा. दो-चार ऐसी माॅडर्न आर्ट टाइप मूर्तियां बन जायेंगी, तो इन्हीं पर पूरे हफ्ते टीवी डिबेट करवा देंगे.
तो फिर चलो माॅडर्न आर्ट टाइप मूर्तियां बनवाएं.तरह-तरह की मूर्तियां टूटी पड़ी थीं. कुछ संगमरमर की, कुछ लाल पत्थर की, कुछ काले पत्थर की. कुछ तो एकदम कच्ची मिट्टी की थीं. संगमरमरवाली मूर्ति टूटकर भी भाव खा रही थी और मिट्टी की टूटी मूर्ति से कह रही थी- जरा दूर हट.
लाल पत्थर की मूर्ति ने कहा- एे मूर्ति, हम सब मूर्ति हैं, सब एक जैसे हैं. ऐसे भेदभाव नहीं करते.संगमरमरवाली मूर्ति ने कहा- पाखंडी, तू अभी खुद उस काले पत्थर की टूटी मूर्ति से दूर हट रही थी. लाल वाली टूटी मूर्ति खिसिया गयी. फिर सारी टूटी-फूटी मूर्तियां एक ट्रक में लदकर साथ-साथ चली गयीं.
उन मूर्तियों को तोड़नेवालों का नेता बड़ी कार में आया. यहां की मूर्तियों को तोड़नेवालों का नेता भी बड़ी कार में आया. वहां की मूर्तियों को तोड़नेवालों का नेता भी बड़ी कार में आया. तोड़नेवालों की कारें एक जैसी थीं. टूटी मूर्तियां जिस ट्रक पर लदीं, वह भी एक ही था. इसे समानता के सिद्धांत का क्रियान्वयन भी कह सकते हैं.
उस मूर्ति को तोड़ने वही बंदा आता था. इस मूर्ति को तोड़ने भी यही बंदा जाता था. यहां की, वहां की मूर्ति तोड़ने को भी वही बंदा जाता था. उसका कारोबार- सीमेंट, ईंटों और रेत का था. मूर्ति तोड़ना जिनका धंधा है, वे मजे में हैं. कारोबार है उनका. मूर्ति-तुड़ैया कांड जो टीवी चैनल दिखा रहे हैं, वह मजे में हैं. कारोबार है उनका. तो मूर्ति तोड़े जाने को क्या मानें.
कारोबार जी कारोबार!
और जो इन सब कारोबारों से जुड़े नहीं हैं, सिर्फ टीवी चैनलों पर मूर्ति तुड़ैया कांड देख रहे हैं, वे क्या हैं?
जी, वे इन कारोबारों के ग्राहक हैं!