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वक्त से मिले आवंटन

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भरोसा जताया है कि बैंकिंग सेक्टर बजट में कृषि ऋण के लिए प्रस्तावित 11 लाख करोड़ के लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम है और इस देनदारी से 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों को संबल मिलेगा. वर्ष 2018-19 के बजट का मुख्य उद्देश्य किसानों की आमदनी […]

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भरोसा जताया है कि बैंकिंग सेक्टर बजट में कृषि ऋण के लिए प्रस्तावित 11 लाख करोड़ के लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम है और इस देनदारी से 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों को संबल मिलेगा. वर्ष 2018-19 के बजट का मुख्य उद्देश्य किसानों की आमदनी बढ़ाना और कृषि क्षेत्र को संकट से उबारना है.
कृषि मंत्रालय के आवंटन में 13 फीसदी की बढ़त की गयी है, जो कि अब 58 हजार करोड़ से अधिक है. साथ ही, कृषि क्षेत्र को 11 लाख करोड़ के कर्ज देने का लक्ष्य है. सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की कामयाबी के लिए यह जरूरी है कि सभी संबद्ध पक्ष उन्हें सही वक्त पर और समुचित तरीके से अमली जामा पहनायें. किसानों की आमदनी बढ़ाये बिना अर्थव्यवस्था में स्थायी बढ़ोतरी को सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है.
उपज की कम कीमत मिलने और कर्ज न चुका पाने की बेबसी न सिर्फ किसानों को बेचैन कर रही है, बल्कि उन्हें मौत के कगार पर भी धकेल रही है. अगर उन्हें कर्ज मिलने में आसानी हो, तो उनकी परेशानियों कम होंगी. वित्त मंत्री ने सुझाव दिया है कि बैंकों को दीर्घकालिक परिसंपत्तियों में निवेश करना चाहिए, ताकि कृषि क्षेत्र में पूंजी निर्माण बेहतर हो सके. वित्तीय तकनीक के निवेश के फायदे ग्रामीण वित्तीय प्रणाली की बेहतरी के रूप में हमारे सामने हैं.
यदि बैंक गांवों और उनकी आर्थिकी में सहभागिता करेंगे, तो यह उनके वित्तीय स्वास्थ्य को भी पुष्ट करेगा. मंत्रालय के आवंटन और कर्ज राशि में वृद्धि के अलावा बड़ी रकम ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी निर्धारित की गयी है. इसमें आवास और सिंचाई जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं पर ध्यान दिया गया है.
इन पहलों को यदि कारगर ढंग से जमीन पर उतार पायें, तो निश्चित ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ी मदद मिलेगी. खेती में आमदनी घटने और गांवों की आर्थिक स्थिति खराब होने का एक नतीजा पलायन भी है, जिससे शहरों में रोजगार और आवास के हिसाब पर दबाव बढ़ता है, जो खुद ही इन समस्याओं से जूझ रहे हैं. खेती में निवेश के साथ नीतिगत हस्तक्षेप भी जरूरी है. आर्थिक समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि बीते तीन दशक से खेती की पैदावार में वृद्धि रुकी पड़ी है.
सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भरता के साथ जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का असर भी चिंताजनक है. श्रमिकों के शहरों की ओर रुख करने का सिलसिला भी खेतिहरों के लिए चुनौती बना हुआ है. इसके साथ उपज के वितरण और बिक्री की मुश्किलें भी हैं. इस परिदृश्य में बैंकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे किसानों और खेती से जुड़े उद्यमों के लिए समुचित धन की व्यवस्था सुनिश्चित करें.
इससे इस क्षेत्र के संकट से निपटने में सहयोग भी मिलेगा और अन्य मुश्किलों से निपटने की तैयारी भी बेहतर होगी. उम्मीद है कि सरकार और बैंकों की ओर से आवंटनों और कर्जों को लोगों तक पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी जायेगी.

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