।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
आजादी की लड़ाई 1915 में एक विचार को जन्म देती है कि अगर संगठन को जिंदा रखना है और उसे गति देना है, तो जनमन से जुड़ना पड़ेगा. दक्षिण अफ्रीकासे भारत लौटे गांधी के इस विचार ने न केवल कांग्रेस को, बल्कि उन तमाम विचारधाराओं को उद्वेलित किया जो अब तक बंद कमरों में बैठ कर बौद्धिक जुगाली कर रहे थे. इनमे दक्षिणपंथी संघ घराना था, वामपंथी साम्यवादी थे और कई एक छोटे-मोटे समूह थे जो अलग नजरिया रखते थे. पहली बार सवाल उठा कि अगर यह मुल्क आजाद हुआ तो शासन तंत्र कैसा होगा? इस पर कांग्रेस का रुख स्पष्ट रहा. वह गांधीजी के हिंद-स्वराज को स्वीकार कर चुकी थी. जनतंत्र और बहुदलीय व्यवस्था पर स्पष्टता नहीं थी, लेकिन उसके बीज पड़ चुके थे. संघ और साम्यवादी, दोनों अपने-अपने ढंग की तानाशाही पर मुतमईन थे (सिद्धांतत: दोनों आज भी उसी पर कायम है, यह बात दीगर है कि वे भी जनतंत्र में मिलनेवाले हक के तहत सत्ता तक पहुंच भी चुके हैं).
बाद में जब मुसलिम लीग सक्रि य हुई और अलग मुल्क की मांग पर अड़ी. वह अपना नया मुल्क बनने तक यह नहीं तय कर पायी कि उसे कौन सा तंत्र चाहिए? यह सवाल उन्हें आज तक दिक्कत में डाले हुए है. इस पृष्ठभूमि से अगर आज के हिंदुस्तान को कसा जाये, जब हम 16वीं लोकसभा के चुनाव में हैं, तो पहला सवाल यही है कि हम किस तंत्र को चाहते हैं? यह सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन जेरे बहस नहीं है. ..एक सांस में कयूम मियां ने अपनी तकरीर खत्म की और हट गये. लेकिन दो कदम चलने के बाद उन्हें याद आया कि इस अवाम को, जो धूप में खड़ी है और बगैर किसी टोकाटोकी के उन्हें सुन लिया, उसे शुक्रि या बोलना चाहिए. चुनांचे वे पलटे, लेकिन तब तक बोलनेवाला औजार किसी और के हाथ में जा चुका था. कयूम मियां तखत से उतर कर दरी पर बैठ गये. अब जो बोल रहा था वह शहर से आया हुआ था. क्योंकि उसके कुर्ते और पाजामे में कलफ लगी थी और आवाज भी कड़क रही थी –
..संघ एक नेता, एक राष्ट्र, एक झंडे पर अडिग है. यानी एकदलीय तानाशाही. अपने इस एजेंडे को लेकर संघ ने बहुत चतुराई से काम शुरू किया था और आज तक उस पर अड़े हुए हैं. आजादी के समय देश के बंटवारे और मुस्लिम लीग की सीधी कार्रवाई ने इन्हें खड़े होने की जमीन दे दी. तुर्रा यह कि मुसलिम लीग के उत्थान और उसके मुल्क के बंटवारे की मांग के पीछे जो और कई ताकतें काम कर रही थीं उसमें संघ भी शामिल रहा. लीग का नारा था- मुसलमानों पाकिस्तान चलो और संघ का नारा था- मुसलमानों भारत छोड़ो.
मुल्क के बंटवारे की भरपूर कोशिश करनेवाले चर्चिल और चर्चिल के इशारे पर काम करनेवाले सावरकर और जिन्ना के जाल में फंस कर साम्यवादियों ने पाकिस्तान का खुला समर्थन किया. कांग्रेस विशेषकर गांधी जी जो बंटवारे के कत्तई विरोधी रहे, उन पर यह आरोप मढ़ने की कोशिश हुई कि मुल्क का बंटवारा गांधीजी ने कराया. संघ का यह कनफुसिया प्रचार आज तक यदा-कदा सुनाई पड़ जाता है. इतना ही नहीं मुसलमानों भारत छोड़ो का नारा लगानेवाले अब ‘अखंड भारत’ भी बोलते हैं. संघ जनतांत्रिक संगठन नहीं है. लेकिन उनमे कई खूबियां भी हैं. मसलन वो कौन से मुद्दे हैं जिस पर जनता को आसानी से अपनी ओर खींचा जा सकता है, इसके लिए उन्होंने धर्मभीरु हिंदू समाज के मन को समझा और उसे उकसाया. हिंदुस्तान, पाकिस्तान का बनना उन्हें रास आ गया और जिन्ना के मुसलमान की तरफदारी के तर्क ने संघ को एक मौका दे दिया कि बंटवारा महज दो धर्मो के टकराव का नतीजा है. जबकि यह बंटवारा सियासी था. अब वक्त है कि हम इसको समझें. यह देश का आखिरी चुनाव होगा, अगर वो जीते जो सुनामी की बात करते हैं.. तालियां बजीं.
धूल झाड़ते हुए सब उधर भागे जहां हेलीकॉप्टर उतरने के लिए ऊपर आसमान में चक्कर काटे जा रहा था. अगल-बगल के घरों से वो औरतें भी दौड पड़ीं जो घर का कामकाज निपटाने में लगी थीं. अशोक बो भी भाग पड़ी. कुल जमा सात दिन का लड़का गोद में लिये- ले देखिले तहूं की हवाई जहाज कैसन होत हउ.. और गोद में चिपके लड़के के माथे से कपड़ा हटा दिया.. हउ देख रे.. और हवाई जहाज टिड्डी माफिक दरिआय के बैठ गया. लगा कि जोर की आंधी आयी. सबके मुंह में धूल.. नेता जी नीचे उतरे. लछमनिया के माई गदगद- केतना सुकुआर नेता, बेचारा वोट मांगे वास्ते इहां ऊसर तक आवा है. हम त येही के देब. जहाज का शोर धीरे-धीरे रु का. नेता जी मंच पे. सबको कहा जा रहा है- सब लोग नीचे आ जायें, मंच कमजोर है और कमजोर मंच पर माला चढ़ गया नेता जी से ज्यादा वजनी और मजबूत. नेता जी ने औजार पकड़ा- हम आपके सेवक हैं. हमारा चुनाव चिह्न् है.. जोर की सीटी बजने लगी. माइक ठीक किया जाये. चिखुरी मुंह बाए खड़े हैं.