Advertisement
मूर्खता की तरह होती है महंगाई
II आलोक पुराणिक II व्यंग्यकार हाय-हाय! कुछ न मिला मिडिल क्लास को बजट में. हे प्राणी, तो मिडिल क्लास से निकल टॉप क्लास बन. किसने रोका है तुझे? टॉप क्लास विजय माल्या लंदन में मजे कर रहे हैं. हाय, कुछ तो इनकम टैक्स में राहत मिलती. हे प्राणी, बेवकूफ है तू, सिर्फ इनकम की सोचता […]
II आलोक पुराणिक II
व्यंग्यकार
हाय-हाय! कुछ न मिला मिडिल क्लास को बजट में.
हे प्राणी, तो मिडिल क्लास से निकल टॉप क्लास बन. किसने रोका है तुझे? टॉप क्लास विजय माल्या लंदन में मजे कर रहे हैं.
हाय, कुछ तो इनकम टैक्स में राहत मिलती.
हे प्राणी, बेवकूफ है तू, सिर्फ इनकम की सोचता है. अबे ऊपर की कमाई की सोच, जिस पर कोई टैक्स नहीं लगता. एकदम टैक्स फ्री कमाई. तूने कभी देखा किसी कस्टम के चपरासी या पीडब्ल्यूडी के चपरासी को इनकम विलाप करते हुए? तू इनकम तक क्यों उलझा हुआ है, कुछ बड़ा सोच.हाय, इतने तरह के नये-नये आइटम आ जाते हैं बाजार में कि कितना भी कमा लो, पूरा नहीं पड़ता.हे प्राणी, बाजार सिर्फ साहसियों की वजह से चल रहा है.
हाय, तो मैं क्या 30 हजार महीने ईमान से कमानेवाला साहसी नहीं.हे प्राणी, तू डरपोक कभी प्याज 100 रुपये किलो हो जाये, तो तू रुदन प्रलाप करने लगता है. तू काहे का साहसी? वह है साहसी, जो एक लाख के मोबाइल के लांच से पहले मोबाइल स्टोर के बाहर रात 12 बजे से लाइन लगा देता है.हाय, जो 2 लाख हफ्ते की रिश्वत खाते हैं, उन्हें कैसा भय एक लाख के मोबाइल से.
हे प्राणी, बीस हजार महीना कमानेवाले भी साहसी हो सकते हैं. देख उस कंपनी में 15 हजार रुपये महीने पर काम करनेवाला वह नौजवान एक लाख का मोबाइल खरीदता है इएमआइ पर. वह है साहसी.
हाय, 15 हजार में से 10 हजार की इएमआइ हर महीने देनेवाला साहसी है या मूर्ख.
हे प्राणी, इसके लिए भी उच्च स्तरीय साहस चाहिए.
हाय, स्मार्टफोन मोबाइल महंगे हो गये बजट के बाद.
हे प्राणी, तू छोड़ स्मार्टफोन, ध्यान लगा भगवत भजन में.
हाय, अब तो भगवत भजन भी बगैर स्मार्टफोन के न हो सकता. तेरी पूजा और न दूजा, चले आओ हम इंतजार में हैं, कातिल तेरा इश्क- इन व्हाॅट्सएप समूहों में हूं मैं.
हे प्राणी, इन समूहों के नाम से लग रहा है कि ये इश्किया गतिविधियों वाले समूह हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि भगवत भजन के नाम पर कई लोग इश्कबाजी कर रहे हैं.हाय, क्या अब आइटम और महंगे तो न हो जायेंगे.
हे प्राणी, जीएसटी लागू होने के बाद यह ज्ञान अब गांठ बांध ले कि मृत्यु और महंगाई कब आ जायें, कुछ भरोसा नहीं. पहले बजट साल में एक बार आता था तो महंगाई का रोना धोना साल में एक बार मचता था. अब जीएसटी कौंसिल की बैठकें साल में कई बार होती हैं. अब तो साल में कभी भी टैक्स बढ़ सकता है. कभी भी महंगाई आ सकती है.
हाय! तो क्या बाकी बचे साल भी महंगाई आ सकती है?
हे प्राणी, महंगाई मूर्खता की तरह होती है, कोई सीमा नहीं. सस्ताई फरिश्ते की तरह होती है, सो कभी न दिखती.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement