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बौद्ध धरोहरों की सुरक्षा जरूरी

आलोक कु. गुप्ता एसोसिएट प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि विगत 19 जनवरी की शाम को बोधगया में गेट नंबर चार व दो अन्य जगहों पर बम मिलने के बाद से गया प्रशासन सकते में आ गया. बोधगया में वर्तमान में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का कालचक्र मैदान में प्रवचन चल रहा है और यह बम […]

आलोक कु. गुप्ता
एसोसिएट प्रोफेसर,
दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि
विगत 19 जनवरी की शाम को बोधगया में गेट नंबर चार व दो अन्य जगहों पर बम मिलने के बाद से गया प्रशासन सकते में आ गया. बोधगया में वर्तमान में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का कालचक्र मैदान में प्रवचन चल रहा है और यह बम उनके प्रवास स्थल के पास प्लांट किया गया था.
चीन एवं मंगोलिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रवचन सुनने बोधगया आये हुए हैं. एक बड़ी दुर्घटना टल गयी. इस घटना को भारत-चीन संबंध के परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है और उसी संदर्भ में भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है.
समकालीन विश्व में प्रत्येक देश अपने विदेश नीति द्वारा अपने ‘राष्ट्रीय हित’ को साधने हेतु अपने ‘सॉफ्ट पॉवर’ को बड़े पैमाने पर तरजीह दे रहा है. भारत भी अपनी ‘सॉफ्ट पॉवर’ क्षमता को तलाश रहा है और उसके उपयोग हेतु प्रयासरत है. विदेश नीति में ‘कल्चरल कनेक्टिविटी’ को बढ़ाने के लिए ‘सॉफ्ट पॉवर’ की बड़ी अहमियत है. ‘कल्चरल कनेक्टिविटी’ का बड़ा फायदा विदेश नीति के अन्य क्षेत्रों में होता है. बौद्ध धर्म इस बाबत भारत के लिए अहम है.
भारत बौद्ध धर्म का उद्गम स्थल है. बोधगया के अलावा सारनाथ, श्रावस्ती, राजगृह, नालंदा मुख्य तीर्थ स्थल हैं, जो भगवान बुद्ध के निर्वाण, प्रवचन और अन्य क्रियाकलापों से जुड़े हैं.
वर्तमान विश्व के लगभग 43 देशों में बौद्ध धर्म फैला हुआ है. विश्व में कुल जनसंख्या का लगभग 6 से 7 प्रतिशत यानी 376 बिलियन लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. इन सभी के लिए भारत एक तीर्थ स्थल है. बौद्ध धर्म के ज्यादातर अनुयायी भारत के पड़ोसी राष्ट्रों में हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल आबादी का लगभग 0.7 प्रतिशत (लगभग 84 लाख) ही बौद्ध धर्म के लोग हैं, जिसमें भी 87 प्रतिशत लोग नव-बौद्ध (नियो-बुद्धिष्ठ) हैं, जो दलित व अन्य जातियों के लोग हैं और जातिगत भेद-भाव के कारण इस धर्म को अपनाये हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगृह, नालंदा और बोधगया पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. नीतीश ने हाल ही में लखीसराय में खुदाई का कार्य आरंभ करवाया, जहां बौद्ध मोनास्ट्री होने के प्रमाण मिले हैं. हो सकता है, ऐसी और जगहें भी हों, जहां इस धर्म से संबंधित स्थल दबे पड़े हों. विदेश नीति के नजरिये से बौद्धधर्म भारत के लिए एक अकूत खजाना है, जिसे अब तक उपयोग में नहीं लाया गया है.
चीन बौद्ध धर्म का उपयोग अपनी आंतरिक अर्थव्यवस्था में भी करता आया है और अपनी विदेश नीति में भी इसके उपयोग को प्रारंभ कर चुका है. कुछ शोध में ऐसा बताया जा रहा है कि चीन का ‘बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव’ पुराने ‘सिल्क रूट’ को फिर से जीवित करने का प्रयास है, जिससे प्राचीन काल में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ. इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य उन देशों को सड़क एवं रेल मार्ग से जोड़ना है, जहां-जहां बुद्धिस्ट हैं. इससे उन देशों के साथ चीन के संबंध प्रगाढ़ होंगे और व्यापार बढ़ेगा.
चीन दलाई लामा को हाशिये पर लाने का कुचक्र भी रच रहा है. इस बाबत वह साम, दाम, दंड और भेद प्रत्येक हथकंडों को अपना सकता है.
ऐसे में, 19 जनवरी की घटना में चीन का हाथ होने को नकारा नहीं जा सकता है! क्योंकि इससे चीन को कई तरह के फायदे होंगे. प्रथम तो यह कि भारतीय कानून व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर चीन अपने और मंगोलिया के नागरिकों को भयभीत कर उन्हें दलाई लामा से प्रभावित होने से रोक सकता है.
अन्यथा दलाई लामा के प्रति चीन के नागरिकों में बढ़ती आस्था के नकारात्मक राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं. पब्लिक डिप्लोमेसी के तहत ऐसे नागरिकों का भारत के प्रति भी मोह बन सकता है, जो चीन के लिए सुपाच्य नहीं है.
दूसरा यह कि अगर चीन के अनुयायियों में भारत यानी ‘बुद्ध की धरती’ के प्रति सम्मान पैदा हो जाये, तो चीन का भारत के प्रति दबंग व्यवहार और आये दिन सीमा पर घुसपैठ जैसी हरकतें चीन के ही विरुद्ध जा सकती हैं.
तीसरा यह कि चीन इस क्षेत्र में भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी भी मानने लगा है, इसलिए इससे पहले कि भारत इस दिशा में बहुत आगे बढ़े, इसे बेपटरी करने का वह पूरा प्रयास करेगा. इसलिए भारतीय विदेश नीति के निर्माताओं को यह सूक्ष्मता से समझना होगा और इस बाबत सतर्कता बढ़ानी होगी और सुरक्षा को चाक-चौबंद करना होगा. यह अब केवल स्थानीय स्तर की कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसके अंतरराष्ट्रीय आयाम हैं और इस बिंदु पर गौर करने की जरूरत है. भारत अपने ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के प्रति द्रुत गति से क्रियाशील है. दक्षिण-पूर्व एशिया बुद्धिस्टों का गढ़ है और चीन वहां भी भारत को बदनाम करने का प्रयास करेगा, ताकि संबंधों में दरार पैदा की जा सके.
भारत ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत प्रत्येक स्तर पर कार्यरत है. इसमें ‘कल्चरल कनेक्टिविटी’ को विशेष रूप से आगे बढ़ाने का प्रयास है, जिसमें बौद्ध धर्म को लेकर भारत को ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन इफेक्ट’ के कारण विशेष लाभ मिलने के आसार हैं, जिसके लिए भारत ‘बुद्धिस्ट सर्किट’ को विकसित करने की जुगत लगा रहा है. अत: यह समझना जरूरी है कि 19 जनवरी की घटना को हलके में लेने की भूल भारतीय विदेश नीति एवं राष्ट्रहित दोनों के लिए घातक हो सकता है.

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