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भारत की दस्तक
दावोस में हो रहा वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का सालाना जलसा उभरते भारत की छवि पेश करने के लिहाज से बहुत अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इसमें भाग लेने का फैसला इस सोच का संकेत है. फोरम में अमूमन वित्त मंत्री तथा प्रतिनिधि मंडल का जाना होता है, पर दो दशक बाद ऐसा अवसर आया […]
दावोस में हो रहा वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का सालाना जलसा उभरते भारत की छवि पेश करने के लिहाज से बहुत अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इसमें भाग लेने का फैसला इस सोच का संकेत है. फोरम में अमूमन वित्त मंत्री तथा प्रतिनिधि मंडल का जाना होता है, पर दो दशक बाद ऐसा अवसर आया है कि प्रधानमंत्री स्वयं इसमें शिरकत करने जा रहे हैं.
1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा दावोस बैठक में शामिल हुए थे. उस समय से भारतीय अर्थव्यवस्था ने लंबी यात्रा तय की है. दो दशक पहले भारत में भूमंडलीकरण की प्रक्रिया शुरुआती अवस्था में थी और देश विकसित मुल्कों की ओर आर्थिक और रणनीतिक मदद की उम्मीद में देखता था. तब उनके मन में यह शंका रहती थी कि भारत आर्थिक सुधारों की गति तेज कर सकेगा या नहीं. सो, बड़े देशों के आर्थिक और रणनीतिक सहयोग की गति एक हद तक सशर्त और धीमी थी. लेकिन, आज स्थितियां बुनियादी तौर पर बदल चुकी हैं.
भारत दो ट्रिलियन डॉलर की एक मजबूत अर्थव्यवस्था और आण्विक-क्षमता वाले राष्ट्र के रूप में उभरा है. प्रमुख आर्थिक मंचों पर भारत को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था माना जाता है, जिसके विकास की संभावनाओं को लेकर कोई संदेह नहीं है. बीते सालों में आर्थिक सुधारों की गति तेज हुई है, नीतिगत खुलेपन और छूट के कारण भारत में अब कारोबार करना आसान है तथा दुनिया के निवेशकों के लिए भारत का विशाल मध्यवर्ग एक आकर्षक बाजार बन चुका है.
ख्यात रेटिंग एजेंसियों और वैश्विक आर्थिक संस्थाओं का यह भरोसा बढ़ा है कि भारत में आर्थिक सुधार अपेक्षित गति से जारी रहेंगे. अब जरूरत प्रमुख देशों के सामने भारत की छवि व्यावसायिक अवसरों के स्वर्णिम देश के रूप में पूरे दम-खम के साथ पेश करने की है. प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ के महात्वाकांक्षी स्वप्न की सफलता बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि भारत अवसरों के उभरते देश की अपनी छवि को कितने विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत कर पाता है.
फिलहाल, यह काम प्रधानमंत्री से अधिक प्रभावशाली ढंग से कोई और राजनेता नहीं कर सकता है. हाल के गैलप इंटरनेशनल सर्वे में उन्हें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों तथा जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के बाद दुनिया का तीसरा सबसे लोकप्रिय नेता करार दिया गया है. एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री दावोस सम्मेलन को दुनिया के ‘अर्थजगत की पंचायत’ करार दे चुके हैं और इस पंचायत में उनके सामने दुनिया के प्रमुख नेता ही नहीं, अर्थजगत के शीर्षस्थ भी मौजूद होंगे.
यह एक सुनहरा मौका है, जब प्रधानमंत्री ढांचागत सुधार की अपनी प्राथमिकता को रेखांकित करते हुए आत्मविश्वास से लबरेज भारत के विकास में दुनिया को भागीदार बनने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थ तंत्र को भी उसे व्यापक तौर पर स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होगी.
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