गुरुग्राम के निजी स्कूल में छात्र प्रद्युम्न की मौत का मामला सुलझा भी नहीं कि लखनऊ के एक स्कूल में एक छात्रा ने चाकू से एक छात्र पर वार किया. सोचना होगा कि छोटी-छोटी बातों को लेकर बच्चे अराजक और हिंसक क्यों बन रहे हैं? बच्चों पर स्कूलों में पढ़ाई का दबाव और ज्यादा किताबों का बोझ है. अभिभावक भी अपने सपनों को लेकर उन पर दबाव बनाते हैं.
परीक्षा में अच्छे रिजल्ट का दबाव अलग ही है. ऊपर से संस्कारवान चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण की जिम्मेदारी लेने वाले शिक्षण संस्थान महज व्यावसायिक संगठन बनकर रह गये है. ऐसे में अभिभावकों को सोचना होगा कि आखिरकार इन दबावों का उनके बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है? कहीं वे अच्छा बनने की बजाय बिगड़ तो नहीं रहे हैं? अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए समय निकालना ही होगा.
महेश कुमार, इमेल से.