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सियासी हमदर्दी की दौड़
हिंदुस्तानी मुस्लिम औरतों के हक को कानूनी जामा देने की कोशिश आखिरकार कुछ वक्त के लिए टल गयी. पार्लियामेंट के अंदर से आनेवाली खबरें खुशी तो लायीं, मगर सवालों के दायरे छोटे नहीं थे. पुलिस और मजिस्ट्रेट की दुहाई देने वाले जानते होंगे कि ‘शायरा बानो’ बार-बार पैदा नहीं होती हैं. यह हिंदुस्तान है साहब! […]
हिंदुस्तानी मुस्लिम औरतों के हक को कानूनी जामा देने की कोशिश आखिरकार कुछ वक्त के लिए टल गयी. पार्लियामेंट के अंदर से आनेवाली खबरें खुशी तो लायीं, मगर सवालों के दायरे छोटे नहीं थे. पुलिस और मजिस्ट्रेट की दुहाई देने वाले जानते होंगे कि ‘शायरा बानो’ बार-बार पैदा नहीं होती हैं. यह हिंदुस्तान है साहब! यहां शौहर से ज्यादा ‘सिस्टम’ सितम ढाता है.
पर्दानशीं मुस्लिम औरतों के लिए पुलिस और मजिस्ट्रेट कोई बकरी का बच्चा नहीं, जो दौड़ा और पकड़ लिया. वैसे भी एक झटके में तीन तलाक कहना कानून की नजरों में सही नहीं, तो फिर किस बात की माथापच्ची? पूरी तरह हमदर्दी की चाशनी में डूबा बिल पार्लियामेंट में पेश किया गया था. उम्मीद थी कि सियासत से ऊपर बिल पास हो जायेगा, मगर क्या करें उनका, जो हमदर्दी की कब्र पर खड़े हो सियासत का तमाशा देखते हैं. सियासी हमदर्दी की दौड़ में हर कोई एक दूसरे को पीछे छोड़ जाने को बेताब है.
एमके मिश्रा, रांची
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