।। रजनीश आनंद।।
(प्रभात खबर.कॉम)
चुनावी मौसम में नेताओं की बयानबाजी ने मन तीता कर दिया है. मैंने सोचा करेले की सब्जी खायी जाये, शायद लोहा लोहे को काटे. इसी सोच के साथ मैं सब्जी खरीदने निकली. सब्जीवाले ने करेला 15 रुपये पाव बताया, तो मैं उससे जुबानी जंग करने लगी कि करेला तो दस रुपये पाव मिलता है. तभी मेरे मित्र शर्माजी वहां आ टपके और बिना मांगे अपनी राय देने लगे- मोहतरमा, सब्जी के दाम का क्या कहना, आज ये तो कल वो. जब आपका दिल करेले पर आ गया है, तो कीमत को छोड़िए और ले लीजिए. मैंने सब्जीवाले को पैसा दिया और नेताओं की बदजुबानी की चर्चा शर्माजी के साथ छेड़ दी. चवन्नी मुस्कान देते हुए शर्माजी ने कहा, अरे मैडम, जाने दीजिए इन नेताओं को. इनके तो डीएनए में ही बदजुबानी है. आप उनकी सोचिए जिनके डीएनए में अब भी मिठास बाकी है.
शर्माजी की बात कुछ समझ में नहीं आयी. मैंने सवालिया निगाहों से उनकी ओर देखा. वह यादों की गलियों से निकलते हुए बोले- हमारे जमाने में जब कोई प्यार में होता था, तो उसकी आंखें और उसके हाव-भाव दास्तान-ए-इश्क बयान कर देते थे. प्रेमिका के घर कीबालकनी निहारते हुए प्रेमी उसका प्रेम पा लेता था और प्रेमिकाएं दुपट्टे का किनारा होंठ में दबाये, अपने प्रेमी की छवि मन में बिठा कर प्रेम पा लेती थीं. इस ‘झटपट युग’ में कहां दिखती है अब प्यार में ऐसी मिठास? शर्माजी की बातें सुन कर मैंने यह तो समझ लिया कि हमारे राजनेता शर्माजी आज प्रेमी बन गये हैं, लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उनकी यह दशा हुई कैसे? सो, मैंने पूछा- आपको आज यह प्रेमानुभूति क्यों हो रही है शर्माजी? मेरे इस मधुर प्रश्न पर शर्माजी ने कहा- ओफ्फ! पूछिए मत मोहतरमा. हुआ यूं कि मैं किसी काम से कचहरी गया था. वहां से घर आ रहा था. आप तो जानती हैं कि कचहरी से मेरे घर का रास्ता एक घंटे का है. इसलिए मैं इत्मीनान से किनारेवाली सीट पकड़ कर बैठ गया था. कचहरी से ऑटो खुला.
अगले स्टॉप पर एक युवती फोन पर बात करते हुए चढ़ी और बिल्कुल मेरे पास आकर बैठ गयी. फोन पर उसकी बातों से साफ लग रहा था कि वह अपने प्रेमी से बात कर रही थी. अपने अनुभव से मैं यह समझ गया कि उसका प्रेमी उससे इजहार-ए-इश्क की गुजारिश कर रहा है. उनकी बातें सुन कर मैं अपने जवानी के दिनों में चला गया. फोन पर वह युवती जिस तरह से इजहार-ए-इश्क के लिए मना करते हुए भी अपनी हामी दे रही थी उससे मेरा दिल झूम उठा. मुङो ऐसा महसूस हुआ कि भले ही हमारे समाज में तमाम विकृतियां आ गयी हों, लेकिन आज भी इजहार-ए-इश्क की वही मिठास कायम है. शर्माजी की खुशी का भान होने पर मुङो भी इस बात की खुशी हुई कि चलो इस चुनावी जंग जब लोगों की जुबान इतनी कड़वी हो गयी है, कुछ तो मीठा है..