तरुण विजय
पूर्व सांसद, भाजपा
गुजरात में बहुत कुछ दांव पर था. वहां तमाम राजनीतिक-मीडिया समूह एकजुट हो गया, जिसने गुजरात में भाजपा शासन को गत तेरह साल एक क्षण सहन नहीं किया. नरेंद्र मोदी की हर मोर्चे पर सफलता से परेशान गुजरात को मानो राष्ट्रीय जनमत संग्रह बना बैठा- 2019 इससे प्रभावित होगा, ऐसे विश्लेषण उछाले गये. लेकिन, गुजरात की जनता ने इस फरेबी ‘मंदिर-जनेऊ-पाखंड’ को धता बताते हुए जय सोमनाथ कह दिया.
गुजरात में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का अथक, असाधारण परिश्रम और रणनीतिक समझ और कोई भी कोर-कसर किसी के भरोसे न छोड़ एक कमाल के चुनाव अभियान में जुटना सफल हुआ.
गुजरात में भाजपा के सारे विधायक नरेंद्र मोदी बन गये. मोदी के व्यक्तित्व, कर्तृत्व तथा केंद्रीय नेतृत्व की सफलता ने गुजरात में 22 साल से चली आ रही सरकार के विरुद्ध आलोचनाओं एवं मोहभंग के आरोप को खारिज कर दिये. यह ठीक है कि भाजपा पिछली गिनती तक नहीं पहुंची, पर सत्य यह भी है कि उसका वोट प्रतिशत 49.10 प्रतिशत तक बढ़ा. पिछली बार से ज्यादा लोगों ने भाजपा को वोट दिया और कांग्रेस को 7.6 प्रतिशत वोट प्रतिशत से पीछे रखा.
गुजरात का चुनाव कांग्रेस ने जाति और व्यक्तिगत गाली-गलौज में बदल दिया. देश, विकास, गरीबी, किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य- सब कुछ दरकिनार हो गये. जिसके मन में जो आया आंकड़े परोसते गये. जब समझा कि गुजरात में हिंदू लहर चल रही है, तो चल पड़े मंदिर दर्शन को.
कल तक मुसलमान वोटों के लिए जो टोपी पहनते थे, गुजरात में जनेऊधारी बन गये. भूल गये कि आखिर देश की जनता जिस व्यक्ति पर देश के नेतृत्व के लिए भरोसा करती है- उस पर गंदी, अशालीन गालियां फेंकने का नतीजा ठीक हो ही नहीं सकता. वास्तव में गुजरात में चुनाव की भूमि रणभूमि में बदल दी गयी. और जब चुनौती ज्यादा ही कठिन हो, तो नरेंद्र मोदी के तेवर और लगन उतनी ही धारदार हो जाती है. नरेंद्र मोदी को आसानियां रास नहीं आतीं.
अब यदि विश्लेषण होना है, तो इस बात का हो कि 24-25 वर्ष के नौजवानों को थका देनेवाली मोदी-अमित शाह की जोड़ी का धुआंधार तूफानी चुनावी अभियान अकेले गुजरात में एक लाख किलोमीटर का सफर तय करा गया.
20-20 से ज्यादा चुनावी सभाएं, 44 रोड शो, हजारों लोगों के साथ मिलना, बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं की लगातार बैठकें तथा स्थानीय चुनावी समर में 63 हजार से ज्यादा जिम्मेदारी वाले यानी ‘दायित्वधारी’ कार्यकर्ताओं का विशेष चिह्नित इलाकों में विशेष काम की जिम्मेदारी, देश के विभिन्न क्षेत्रों से सांसदों, विधायकों और चुनावी कार्य में अनुभवी कार्यकर्ताओं का गुजरात दौरा- प्रत्येक के साथ मिलना तथा मार्गदर्शन- यह सब किसी की निगाह में आसानी से नहीं आयेगा.
भाजपा के पीछे जिन अनथक, अनाम कार्यकर्ताओं का बल है, वह किसी भी सामान्य चुनावी विश्लेषक के ध्यान में आ ही नहीं सकता. ऐसी देश में कौन सी पार्टी या संगठन होगा, जिसके समर्थन में चार-चार पीढ़ियां लगातार कार्य करती आ रही हों- दादा, पिता, बेटा और पोता एक साथ एक पार्टी के लिए खड़े हों, तो फिर उसका जीतना-हारना कम महत्व रखता है, महत्व रखता है लोकतंत्र में सामान्य जन की भागीदारी मजबूत बनानेवाले दल का पुण्य.
देश, यहां कि हिंदू संस्कृति और सभ्यता का सर्व समावे की थी, वह प्रवाह जो सबको सब आस्थाओं को, मतावलंबियों को समानता के सूत्र में पिरोते हुए भारतीयता का विविध रंगी उपवन समृद्ध, सशक्त भारत के निर्माण की दिशा में ले चले.
यह है कि जनसंघ-भाजपा के अस्तित्व का सत्व. आखिर कोई तो बात रही होगी कि पिछले तीन सालों में देश ने भ्रष्टाचार के कांड नहीं देखे, जहां सदियों से अंधेरा था, वहां उजाले के बल्ब और रसोई में ईंधन गैस पहुंची, विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था और सुपर-शक्ति वाले देशों के साथ खड़ा भारत का नेतृत्व देखा.
गुजरात ने विकास के सामने खड़े होने का प्रयास कर रहे विनाश को हराया. पर इसके साथ भाजपा को समझना होगा कि केवल मोदी-शाह की मेहनत, समरनीति के अलावा भी उसे भीतर तक संगठन को नयी ताजगी भरी ऊर्जा और ऊष्मा से स्पंदित करना होगा. सत्ता स्वयं, बिना पूछे अहंकार साथ लाती है.
नरेंद्र मोदी भाजपा दल या संगठन की चुनावी आवश्यकता नहीं, बल्कि भारत के विकास और उसे विश्व में सशक्त समर्थ उन्नत राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को हासिल करने की आवश्यकता हैं. इसके लिए देश के अन्य किसी भी दल के पास सिवाय अपने परिवार जनों मां, बेटे, भाई, भतीजे, चाचा, चाची के अलावा और कोई नहीं है. इसलिए हिमाचल, जो गुजरात के समर में लगभग भुला ही दिया गया, तथा गुजरात जीतने के बाद केरल, कर्नाटक, बंगाल, तमिलनाडु भाजपा के पास आने ही चाहिए. तब भारत गत सत्तर वर्षों में जो गतिहीनता आयी, उससे उबरेगा.
यह जीत, भाजपा को और अधिक विनम्र और अधिक सर्व-समावेशी तथा भारत के प्रत्येक नागरिक के प्रति भेदभाव रहित संवेदना मुक्त बनाये, यही कामना है.