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चुनावी शोर में डूबी शिक्षा की बदहाली

शिक्षा से एक उन्नत व जाग्रत समाज बनने-बनाने की अपेक्षा होती है. और इन दिनों शिक्षा के साथ सत्ता प्रतिष्ठानों के गैर जिम्मेवाराना सलूक ने एक अलग तरह की निराशा का वातावरण रचा है. कोई भी उदासीनता या लापरवाही जब गैरजिम्मेवारी के दायरे में चली जाती है, तो कई असामान्य बातें घटित होती हैं. सरकार […]

शिक्षा से एक उन्नत व जाग्रत समाज बनने-बनाने की अपेक्षा होती है. और इन दिनों शिक्षा के साथ सत्ता प्रतिष्ठानों के गैर जिम्मेवाराना सलूक ने एक अलग तरह की निराशा का वातावरण रचा है. कोई भी उदासीनता या लापरवाही जब गैरजिम्मेवारी के दायरे में चली जाती है, तो कई असामान्य बातें घटित होती हैं. सरकार की इसी गैर जिम्मेवारी ने शिक्षा परिसरों में उग्रता भर दी है.

युवा जीवन के विविध क्षेत्रों में आयी कई तरह की उग्रताओं-असामान्यताओं के पीछे कहीं न कहीं शिक्षा परिसरों में आयी इसी विकृति का हाथ है. राज्य भर में संबद्ध डिग्री कालेजों के शिक्षक घाटानुदान और अधिग्रहण को लेकर आंदोलनरत हैं. इससे न केवल छात्रों का नामांकन, परीक्षा, पुस्तिकाओं का मूल्यांकन आदि बाधित हुए हैं, बल्कि उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने के सपने बुननेवालों के साथ अन्याय हुआ है तथा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनेवाले छात्र निराश हुए हैं. कुछ कॉलेजों की छात्रओं को सड़क तक पर उतरना पड़ा.

अभी-अभी इन प्रभावित डिग्री कॉलेजों में फॉर्म भरवाये गये, पर दो सौ रुपये दंड शुल्क के साथ. आखिर इन छात्रों का क्या जुर्म है? यही नहीं, इससे पूर्व राज्य के वित्तरहित इंटर कॉलेजों के आंदोलन से बारहवीं की परीक्षा भी अधर में लटक जाती, यदि सरकार ने इन्हें आश्वासन का झुनझुना न थमाया होता. कितना शर्मनाक है कि राज्य भर में 11वीं की जो परीक्षा फरवरी तक हो जानी चाहिए थी, वह अब तक नहीं हुई है. चुनाव समाप्त होने से पहले शायद ही इस पर किसी का ध्यान जाये! विडंबना यह है कि फरवरी में ही पुस्तिका-प्रश्नपत्र विद्यालयों-महविद्यालयों में आ गये और धूल फांक रहे हैं.

विचारक विलियम एलिन ने कहा है- ‘शिक्षा सवालों का जवाब नहीं है, यह सभी सवालों के जवाब ढूंढ़ने का रास्ता है.’ सवालों के जवाब ढूंढ़ने के इन रास्तों को गैर जिम्मेवार लोगों ने इतना कंटकाकीर्ण कर दिया है कि जवाब बच्चे बहुत आसानी से नहीं ढूंढ़ पायेंगे. शिक्षा की यह हालत इसलिए नहीं है कि इस क्षेत्र में समझदार और विवेकवान लोगों की कमी है, बल्कि सरकारों के सरोकार दिन गिन कर बिताने तक सिमट गये है. ऐसे में कोई भी सरकार आ जाये शिक्षा को वह कितनी गंभीरता से लेगी, यह संदिग्ध ही रहेगा.

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