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जीवन-शैली में सतर्कता

इस किस्म की जीवन-शैली के कारण होनेवाली बीमारियों, जैसे- मधुमेह, श्वांस रोग और हृदय रोगों, से भारत में संक्रामक रोगों, जैसे- तपेदिक और पेचिश, की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मरते हैं. जिलेवार बीमारियों के प्रसार और मौतों के बारे में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट के आंकड़ें इस तथ्य की निशानदेही करते हैं. अमूमन जीवन-शैली […]

इस किस्म की जीवन-शैली के कारण होनेवाली बीमारियों, जैसे- मधुमेह, श्वांस रोग और हृदय रोगों, से भारत में संक्रामक रोगों, जैसे- तपेदिक और पेचिश, की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मरते हैं.
जिलेवार बीमारियों के प्रसार और मौतों के बारे में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट के आंकड़ें इस तथ्य की निशानदेही करते हैं. अमूमन जीवन-शैली के रोगों को खान-पान की आदतों, काम और आराम की स्थितियों, तनाव और दबाव तथा सेहतमंद जलवायु परिवेश, जैसे- साफ हवा-पानी की उपलब्धता, के साथ जोड़कर देखा जाता है. रिपोर्ट की एक खास बात यह भी है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में परंपरागत रूप से बेहतर और लचर- दोनों तरह के राज्यों में जीवन-शैली से जुड़े रोग संक्रामक रोगों की तुलना में ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं.
केरल, तमिलनाडु, गोवा और पंजाब जैसे राज्यों में बीमारी के मामले में यह बदलाव अगर 1980 के दशक में हुआ, तो झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में नयी सदी की शुरुआत के दशक में. जाहिर है, एक विकासशील देश के रूप में भारत के तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जीविका की स्थितियों में आ रहे बदलाव के मद्देनजर जीवन-शैली संबंधी जागरूकता और स्वास्थ्य ढांचे के विकास की प्राथमिकताओं को लेकर नये सिरे से सोचने की जरूरत है.
बेशक, जीवन-शैली जनित बीमारियां ज्यादा घातक हैं, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं कि संक्रामक रोग अथवा कुपोषण के कारण होनेवाली बीमारियों का देश के स्वास्थ्य ढांचे पर बोझ कम है और उनके प्रसार पर अंकुश लगाने में एक हद तक कामयाबी मिली है. सरकारी रिपोर्ट के तथ्यों से यह भी जाहिर होता है कि देश की अर्थव्यवस्था पर बीमारियों के कारण पड़नेवाले बोझ में सबसे बड़ा हिस्सा (16 फीसदी) कुपोषण के कारण होनेवाले रोगों का है. स्वास्थ्य ढांचे पर सबसे ज्यादा बोझ (कुल का दो तिहाई) संक्रामक रोगों का है.
हाल में प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट में छपी एक शोध रिपोर्ट से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है. उस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य की व्यवस्था पर सबसे ज्यादा बोझ उन बीमारियों का है, जो पर्याप्त पोषक आहार न मिलने से पैदा होती हैं. देश की 46 फीसदी आबादी आयरन, विटामिन या प्रोटीन समुचित मात्रा में न मिलने के कारण घातक बीमारियों की चपेट में आती है. देश की 39 फीसदी आबादी यक्ष्मा (टीबी) जैसी बीमारी के असर में है, जबकि इसके उन्मूलन के कार्यक्रम दशकों से चल रहे हैं.
कुपोषण पैदा करनेवाले हालात में सकारात्मक हस्तक्षेप (जैसे- कारगर सार्वजनिक वितरण प्रणाली) तथा स्वास्थ्यकर परिवेश (जैसे- साफ हवा-पानी) की योजनाओं पर कारगर अमल करने के साथ-साथ स्वास्थ्य ढांचे तक लोगों की पहुंच को ज्यादा आसान बनाने के लिए सरकारी खर्च बढ़ा कर ही इस स्थिति का समाधान निकाला जा सकता है.

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