।। आकार पटेल।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
नरेंद्र मोदी के बड़ौदा से नामांकन की खबर कवर कर रहे एक टेलीविजन शो में मैं हिस्सा ले रहा था. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार उत्तर प्रदेश के वाराणसी से भी चुनाव लड़ रहे हैं. फस्र्ट पोस्ट के संपादक आर जगन्नाथन भी इस शो में थे. उनसे पूछा गया कि दोनों जगहों से जीतने की स्थिति में मोदी कौन-सी सीट चुनेंगे. जगन्नाथन ने कहा कि मोदी वाराणसी को चुनेंगे, क्योंकि हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र होने के कारण इस स्थान की एक प्रतीकात्मकता है. भाजपा का जुड़ाव इस शहर और ज्ञानवापी मसजिद के मसले से लंबे समय से रहा है. औरंगजेब द्वारा एक मंदिर को गिराकर 1669 में बनी यह मसजिद हिंदुत्व के एजेंडे में बनी रहती है. वाराणसी का प्रतिनिधित्व कर मोदी उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरोधियों का भी सामना करेंगे. हाल के चुनावों में पार्टी तीसरे-चौथे स्थान पर रही है और बाबरी प्रकरण के बाद यह पहला मौका होगा, जब भाजपा इस राज्य में जीत हासिल करेगी. वाराणसी के सांसद के रूप में मोदी इसे अपनी जीत होने का दावा कर सकते हैं.
ये सारी बातें तार्किक प्रतीत होती हैं और इसकी प्रबल संभावना है कि वे वाराणसी को चुनेंगे और बड़ौदा की सीट छोड़ देंगे. 1996 में बड़ौदा और 2004 में वाराणसी की कांग्रेस से हार को छोड़ दें, तो ये दोनों सीटें 1991 से भाजपा के पास हैं. हालांकि, ये समानताएं यहीं समाप्त हो जाती हैं. वाराणसी एक खंडित चुनाव क्षेत्र है और वहां मतदान के रुख का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है. डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट में प्रो एके वर्मा ने बताया है कि वाराणसी में 16 लाख मतदाता हैं, जिनमें चार लाख अन्य पिछड़ा वर्ग से, तीन लाख ब्राrाण, 3.25 लाख जोतदार भूमिहार, ठाकुर और अन्य सवर्ण, 2.5 लाख मुसलिम और 1.2 लाख ‘अन्य’ (बंगाली, पंजाबी, दक्षिण भारतीय) हैं.
हालांकि, भाजपा यहां से जीतती रही है, लेकिन 2009 में मतदान का सिर्फ 30 प्रतिशत वोट लेकर ही मुरली मनोहर जोशी जीते थे. उनकी जीत का अंतर 20,000 से भी कम रहा था. इस हिसाब से यह कोई सुरक्षित सीट नहीं है.
दूसरी तरफ बड़ौदा ने भाजपा को लगातार एक लाख से अधिक का अंतर और 50 फीसदी वोट शेयर दिया है, भले ही उसका प्रत्याशी कोई भी रहा हो. कांग्रेस ने गायकवाड़ परिवार के बूते बड़ौदा में अपना वर्चस्व बनाये रखा था, लेकिन वहां भी भाजपा ने सेंध लगा दी है. नरेंद्र मोदी अपना पर्चा दाखिल करते समय गायकवाड़ परिवार के एक सदस्य को साथ लेकर गये थे.
यही कारण है कि मोदी बड़ौदा पर अपना दबदबा कायम कर सकते हैं. किसी सीट को चुनते वक्त मोदी को मात्र इस चुनाव से इतर सोचना होगा. दक्षिण एशिया के हर राजनीतिक परिवार ने ऐसे जगह बनाये हैं, जहां से वे बिना किसी परेशानी के संसद पहुंच सकें. भुट्टो परिवार के पास लरकाना है, गांधी परिवार के पास अमेठी है, मुजीब और उनके परिवार के पास गोपालगंज है, पवार परिवार के पास बारामती है. जैसा कि जगन्नाथन ने उक्त टेलीविजन शो में कहा, ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार का ध्यान बंटने का एक बड़ा कारण खत्म हो जाता है और वह अपना समय अन्य जगहों में लगा सकता है.
सर्वविदित है कि मोदी का कोई सगा नहीं है, जिसके लिए उन्हें कोई विरासत छोड़नी है, लेकिन उनको भी ऐसी सीट की जरूरत है, जहां से वे बिना किसी परेशानी के चुनाव लड़ सकें. 64 साल की उम्र में वे अपेक्षाकृत जवान हैं और उन्हें आनेवाले कई चुनावों में हिस्सा लेना है.
दूसरा पहलू यह है कि बड़ौदा में बने रहने से वे अपने प्रभाव क्षेत्र को नियंत्रित कर सकते हैं. कहने का मतलब यह है कि वे गुजराती सांसदों के समूह के नेता हो सकते हैं, जिनके हितों का वे प्रतिनिधित्व करेंगे. ऐसा उत्तर प्रदेश में नहीं है, जहां जातीय और क्षेत्रीय गुट हैं, जिनसे बाहरी होने के कारण मोदी स्वाभाविक रूप से अलग हैं. अभी तो कोई समस्या नहीं है, क्योंकि अपने नेतृत्व में उन्होंने पार्टी को एकताबद्ध किया है, लेकिन भविष्य में क्या होगा, यह कोई नहीं बता सकता है. गांधी परिवार व भुट्टो परिवार को भी खास सीट तैयार करनी पड़ी है और मोदी के लिए वाराणसी वैसी जगह नहीं हो सकती है.
स्पष्ट भाषाई और क्षेत्रीय संबंधों के अलावा मोदी के पास बड़ौदा को चुनने का एक और कारण है. इस शहर में बड़ी और शक्तिशाली मराठा जनसंख्या है, क्योंकि शिवाजी के बाद के मराठा सेनापतियों ने गुजरातियों पर जीत हासिल की थी. मोदी आरएसएस के अपने संबंधों के कारण मराठियों के नजदीक हैं. उनके मार्गदर्शक मधुकरराव भागवत (वर्तमान संघ प्रमुख के पिता) ने इस हिंदुत्व संगठन को स्थापित करने के लिए बड़ौदा में कई साल बिताये थे.
अहमदाबाद के बाद बड़ौदा देश का दूसरा सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा से ग्रस्त शहर है और यहां की मराठी जनसंख्या इस हिंसा में काफी सक्रिय रही है, जो इसे भारतीय जनता पार्टी के और नजदीक लाती है. मोदी इस शहर को जब तक चाहें, अपने साथ रख सकते हैं. मुझे आश्चर्य नहीं होगा, जब मोदी बनारस-काशी के स्वाभाविक आकर्षण के बावजूद बड़ौदा का चयन करें.