प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सचिव संजय बारू की पुस्तक की चर्चा अभी थमी भी नहीं थी कि पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख की पुस्तक ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया.
चुनाव के इस दौर में ही एक-एक करके दोनों पुस्तकों का आना और उनके जरिये प्रधानमंत्री के कार्यो को कठघरे में खड़ा करना क्या एक राजनैतिक हमला है? यदि हां, तो इस हमले से किस पार्टी को चुनावी लाभ इस आम चुनाव में होगा? यह हमला देश, देश की आम जनता, देश के लोकतंत्र और वर्तमान में विपक्षी पार्टियों के लिए एक गंभीर खतरा हैं. इन पुस्तकों में जिन मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, उनका अंदेशा देश की जनता को पहले से था, लेकिन सरकारी सेवा के अधिकारियों की क्या यह जिम्मेवारी नहीं बनती कि सेवानिवृत्ति के बाद भी अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेवार और वफादार बने रहें?
गणोश कुमार, ई-मेल से