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एक और गौरी

दो कलमधारी हैं, दोनों के नाम ‘ग’ से शुरू होते थे. ‘ग’ से ही हमारे यहां ‘गणपति’ का नाम भी शुरू होता है. गणपति हमारी परंपरा के प्रथम स्टेनोग्राफर हैं, यानी कलमधारी भगवान! कथा है कि वेद व्यास महाभारत की कथा कहते चले गये अौर गणपति उसे लिपिबद्ध करते गये. तो ये तीनों कलम की […]

दो कलमधारी हैं, दोनों के नाम ‘ग’ से शुरू होते थे. ‘ग’ से ही हमारे यहां ‘गणपति’ का नाम भी शुरू होता है. गणपति हमारी परंपरा के प्रथम स्टेनोग्राफर हैं, यानी कलमधारी भगवान! कथा है कि वेद व्यास महाभारत की कथा कहते चले गये अौर गणपति उसे लिपिबद्ध करते गये. तो ये तीनों कलम की परंपरा के लोग थे- गणपति, गौरी अौर गालिजिया!
गालिजिया को माल्टा के लोगों ने बम से उड़ा दिया- ठीक वैसे ही जैसे हमने अपनी गौरी लंकेश को गोली मार दी. अाप समझ सकते हैं कि जिस कलम को खरीदना अौर बेचना इतना अासान है कि बस एक अात्मा का सौदा करके, इस सौदे को निबटाया जा सकता है, उसी एक कलम को चुप कराना इतना कठिन हो जाता है कि अापको बम-बंदूक तक पहुंचना पड़ता है. गालिजिया माल्टा की एक खोजी पत्रकार थी, जिसने उन सबका जीना मुहाल कर रखा था, जिन्होंने राजनीतिक सत्ता को धन कमाने की मशीन में बदल रखा है. दुनिया के तमाम सत्ताधारी यही एक काम समान कुशलता से तब तक करते रहते हैं, जब तक किसी गौरी या गालिजिया की कलम की जद में नहीं अा जाते. गालिजिया का ‘रनिंग कॉमेंट्री’ नामक ब्लॉग सबकी जान सांसत में डाले हुए था. धुअांधार लिखा जानेवाला अौर खूब पढ़ा जानेवाला यह ब्लॉग माल्टा की राजनीति में जलजला रच रहा था.
पनामा पेपर भंडाफोड़ के बाद से राजनेताओं के अार्थिक भ्रष्टाचार का जैसा स्वरूप उजागर हुअा है, वह सबको हैरानी में डाल गया है. उसकी धमक अपने देश तक भी है. कागजी कंपनियां बनाकर, उन देशों में, जिन्हें ‘टैक्स हैवन’ कहा जाता है, खरीद-फरोख्त का फर्जी कारोबार चलता है अौर अरबों-खरबों के वारे-न्यारे किये जाते हैं. अाज हमारी सरकार विदेशों में जमा जिस अकूत कालेधन के खिलाफ जबानी जंग छेड़े रहती है, वह इसी रास्ते सफर करता है. यह बात दूसरी है कि नोटबंदी के शेखचिल्लीपने के बाद इस दावे की हवा निकल गयी है.
तिरपन साल की डाफ्ने कारुअाना गालिजिया ने इस धंधे से अपने देश के शासकों का सीधा रिश्ता खोज निकाला अौर देश को बताया कि प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कत की पत्नी एक कागजी कंपनी बनाकर, अजरबेजान के शासक परिवार से मिलकर बेहिसाब पैसा बना रही हैं, जो बाहरी बैंकों में जमा किया जा रहा है. इस भंडाफोड़ ने माल्टा की राजनीति में भूचाल ला दिया अौर लाचार होकर प्रधानमंत्री मस्कत को नये चुनाव की घोषणा करनी पड़ी. वे चुनाव तो जीत गये, लेकिन न वह ताकत बची अौर न वह चेहरा! चुनावी जीत अौर नैतिक हार में कितना कम फासला होता है, यह हमने अपने देश में बारहा देखा है. प्रधानमंत्री मस्कत चुनाव तो जीत गये, लेकिन लड़ाई हार गये अौर गलिजिया रोज-रोज अपने ब्लॉग पर नये-नये खुलासे करने लगी.
गलिजिया की रट यही थी कि हमारे छोटे-से द्वीप-देश का सारा राजनीतिक-सामाजिक जीवन भ्रष्टाचार से बजबजा रहा है. हमारा व्यापार-तंत्र धन की हेरा-फेरी अौर घूस खाने-खिलाने में लिप्त है अौर अपराधियों से सांठ-गांठ कर चल रहा न्यायतंत्र या तो नाकारा हो गया है या चाहता ही नहीं कि अपराधियों तक कोई पहुंचे. छोटे-से द्वीप-देश माल्टा को माफिया-प्रदेश में बदल दिया गया है. वह बार-बार याद दिलाती थी कि पिछले दस सालों में माल्टा में माफिया ने 15 हत्याएं की हैं. कभी कोई पकड़ा नहीं गया है, तो पकड़नेवाले कहां हैं? क्या पकड़नेवाले ही अपराधियों के साथ हैं? जब वह ऐसे सवाल पूछ रही थी, तब उसे कहां पता था कि उसकी कार में लगाया गया बम फटने ही वाला है.
अपने अंतिम ब्लॉग में गालिजिया ने प्रधानमंत्री मस्कत के मुख्य अधिकारी के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात प्रमाण के साथ लिखी थी और कुछ कागजों का भी जिक्र किया था. ब्लॉग के अंत में उसने लिखा था- ‘हर तरफ शैतानों के झुंड हैं, स्थिति बहुत नाजुक है!’ इसके अाधे घंटे बाद ही उसके कार में बम फटा था.
अब शैतानों का झुंड खामोश है. वह राजतंत्र, व्यापार-तंत्र अौर न्यायतंत्र, जिनकी बात गालिजिया ने की थी, सब खामोश हैं. गौरी लंकेश की हत्या के बाद भी सारा तंत्र इसी तरह खामोश था. अगर कहीं कोई अावाज थी, तो यही बताने के लिए थी कि ‘हमने नहीं किया!’ गालिजिया की हत्या के बाद प्रधानमंत्री मस्कत ने भी ऐसा ही कहा- ‘इस हत्या से मैं स्तब्ध हूं! गालिजिया मेरी सबसे कटु अालोचक थी. फिर भी मैं कभी भी, किसी भी तरह इस बात की अाड़ लेकर उस बर्बर कृत्य का समर्थन नहीं करूंगा, जो सभ्यता व प्रतिष्ठा के खिलाफ जाता है.’
जिस सच को कहने की हिम्मत प्रधानमंत्री नहीं जुटा सके, वह कहा गालिजिया के बेटे मैथ्यूज ने- ‘मेरी मां की हत्या कर दी गयी, क्योंकि वह कानून के शासन व उसका उल्लंघन करनेवालों के बीच खड़ी थी.… वे ऐसा कर सके, क्योंकि वह इस लड़ाई में अकेली थी.’ जाहिर है, आज हम सबको अपना समाज बचाने अौर बनाने के लिए एक नहीं, कई गालिजिया की जरूरत है, जिसके हाथ में कलम हो.

कुमार प्रशांत
गांधीवादी विचारक
k.prashantji@gmail.com

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