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उल्टी तरफ से
सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार नेता ने बिगड़ैल बच्चे की तरह पिछले साठ साल से महान न बनने की जिद पर अड़े देश को मार-पीटकर महान बनाने के लिए जो भी कुछ किया जाना था, वह सब, और जो नहीं भी किया जाना था, वह भी, कर डाला था. मसलन, नोटबंदी करके अलमारी में बिछे अखबार […]
सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
नेता ने बिगड़ैल बच्चे की तरह पिछले साठ साल से महान न बनने की जिद पर अड़े देश को मार-पीटकर महान बनाने के लिए जो भी कुछ किया जाना था, वह सब, और जो नहीं भी किया जाना था, वह भी, कर डाला था.
मसलन, नोटबंदी करके अलमारी में बिछे अखबार के नीचे, रसोईघर में दाल-चावल के डब्बों में, यहां तक कि बच्चों की गुल्लकों तक में कालेधन के रूप में छिपाकर रखे गये एक-एक नोट को बदलवाने के लिए अरबों बेईमान देशवासियों को घंटों, दिनों और हफ्तों तक भी बैंकों के आगे लाइनों में लगने को मजबूर कर दिया. किताबों में नोट रखकर भूल जानेवाले भ्रष्टाचारी तो बाद में अहमद फराज की तरह यही कहते रह गये- अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें, जिस तरह रखकर भूले हुए नोट किताबों में मिलें.
कालेधन पर किये गये इस अंधाधुंध वार से बैंकों के पास इतना कालाधन वापस आया कि उनसे गिना तक नहीं गया. पैसे-पैसे को मोहताज जनता दुष्यंत कुमार का यह शे’र याद करके रह गयी- किससे कहें कि छत की मुंडेरों से गिर पड़े, हमने ही खुद पतंग उड़ाई थी शौकिया. रही-सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी, जिसकी बदौलत जनता लगभग सारी चीजें पहले से ज्यादा कीमत पर खरीदने का गौरव प्राप्त कर सकी.
विकास तो पूछो ही मत कि नेता ने कितना किया. जितना साठ साल में नहीं हुआ, उतना साठ दिन में कर डाला और फिर भी विकास का पीछा नहीं छोड़ा और करता ही चला गया. एक के बाद एक योजनाएं घोषित कीं और हर अगली योजना घोषित करने से पहले इस बात की जरा भी परवाह नहीं की कि पिछली का क्या हुआ. हर योजना ने जनता का ऐसा विकास किया कि वह अघा गयी. विकास की गुदगुदी से उसके पेट में बल पड़ गये और हंस-हंसकर लोटपोट होते हुए वह कराह उठी कि बस, और नहीं!
ऐसे अद्भुत तरीकों से देश को विश्व के बिना माने ही, बल्कि उसे पता तक चलने दिये बिना, उसका गुरु बना देने के बाद नेता ने अपना एक डाक-टिकट छपवाने का निश्चय किया. डाक-टिकट छप गया और जनता तक पहुंच भी गया, पर जल्दी ही उसके बारे में यह समस्या देखने में आयी कि वह आसानी से चिपकता नहीं था और किसी तरह चिपकता भी था, तो जल्दी ही उखड़ जाता था.
डाक विभाग के अधिकारी हैरत में पड़ गये, क्योंकि नेता का मामला होने के कारण उन्होंने डाक-टिकट के मुद्रण में हर सावधानी बरती थी और गोंद भी खास तौर से उच्च कोटि का लगाया था. गुपचुप तरीके से उन्होंने पता लगवाया, तो यह अजीब तथ्य सामने आया कि जनता डाक-टिकट को उलटी तरफ थूककर चिपकाने का काम कर रही थी.
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