देश और राज्य में सभी सरकारों ने अनुबंध कर्मियों को बंधुआ मजदूर की तरह उपयोग किया है. चाहे राष्ट्रीय दल हो या क्षेत्रीय दल, सबने इन्हें बेरोजगारी का भय दिखा कर शोषण ही किया है. एक तरफ बंधुआ मजदूरी कानूनन अपराध है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट तक की मुहर लगी हुई है, लेकिन दूसरी तरफ इस कर्मी को बहाल करने में सरकार गौरवान्वित महसूस करती है.
हाल ही में संथाल परगना के चुनावी दौरे पर हेमंत सोरेन ने पारा शिक्षकों की समस्याएं दूर करने की बात कही थी. चुनाव के पहले और उसके पहले भी आपकी ही सरकार थी, उस समय आपने पारा शिक्षकों की समस्याएं नजरअंदाज क्यों की? लगभग यही स्थिति सभी विभागों की है. फुसला कर काम लेते हो और पैसे देने में कंजूसी करते हो. पांच साल में आपकी आमदनी पांच गुणा बढ़ जाती है, और हमारी जस की तस है. ऐसा क्यों?
संजय कुमार, दुमका