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भारत-नेपाल संबंधों के आयाम

डॉ प्रशांत त्रिवेदी दिल्ली विश्वविद्यालय नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा जी अपनी पांच दिवसीय यात्रा पर भारत में थे. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने ऊर्जा, सड़क, रेल, सुरक्षा, व्यापार, ड्रग्स तस्करी पर रोक जैसे आठ बड़े समझोतों पर हस्ताक्षर किये. देउबा की यह यात्रा 2014 के बाद नेपाल -भारत संबंधों के ‘विशेष रिश्ते’ की नयी […]

डॉ प्रशांत त्रिवेदी
दिल्ली विश्वविद्यालय
नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा जी अपनी पांच दिवसीय यात्रा पर भारत में थे. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने ऊर्जा, सड़क, रेल, सुरक्षा, व्यापार, ड्रग्स तस्करी पर रोक जैसे आठ बड़े समझोतों पर हस्ताक्षर किये.
देउबा की यह यात्रा 2014 के बाद नेपाल -भारत संबंधों के ‘विशेष रिश्ते’ की नयी कड़ी है; जो भूगोल, संस्कृति के रेशमी धागे से गुंथी है; क्योंकि नेपाल की पिछली केपी ओली सरकार ने अपने फायदे के लिए चीन को प्रमुखता देते हुए भारत विरोधी भावनाएं खूब भड़कायी थी, जिसने दोनों देशों के मध्य एक मनोवैज्ञानिक गतिरोध को जन्म दिया था.
देउबा ने भारत को आश्वस्त किया है कि वह अपनी जमीन किसी प्रकार की भारत विरोधी गतिविधियों के लिए उपयोग नहीं होने देंगे. क्योंकि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से भी नेपाल बहुत संवेदनशील है; भारत के नक्सली व उत्तर-पूर्व राज्यों के उग्रवादी नेपाल की सीमा में अपनी पैठ रखते हैं. भारत और चीन दोनों के बीच बफर स्टेट के रूप नेपाल का भू-सामरिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है.
चीन के लिए नेपाल का महत्व तिब्बत के साथ इसकी निकटता के कारण है, क्योंकि जब 1959 में तिब्बत में खाम्पा विद्रोह हुआ था, तब विद्रोहियों ने नेपाल सीमा का उपयोग किया था. इसके आलावा नेपाल में बड़ी मात्रा में तिब्बती लोग रहते हैं. चीन के दक्षिणी भाग के कई राज्य जैसे सिजुयान, कुनमिंग व तिब्बत की नजदीकी नेपाल से है. अतः चीन के लिए भी नेपाल की उपयोगिता बढ़ जाती है. जिस प्रकार से लद्दाख, डोकलाम में चीन की गतिविधियां बढ़ रही हैं, उसके मद्देनजर नेपाल को आत्मविश्वास में लेना जरूरी है.
नरेंद्र मोदी और देउबा ने कटिया-कंसुआ व रक्सौल-रवानीपुर बिजली ट्रांसमिशन लाइनों का उद्घाटन किया. अरुणाचल सिंचाई परियोजना की जमीन का मुद्दा हल होने को है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेपाल में जलविद्युत की व्यापक संभावनाएं हैं, भारत कई परियोजनाओं में नेपाल के साथ मिलकर काम भी कर रहा है.
लेकिन कुछ दिक्कतें आ रही हैं- एक तो यह सहयोग जो दोनों देशों को लाभ पहुंचा सकता है, अब दोस्ती की बजाय अविश्वास का प्रतीक बन गया है. नेपाल के बड़े जन समूह को लगता है कि भारत ने कोसी, गंडक, व महाकाली नदियों में जो जल संधियां हुई हैं, उनमें नेपाल के साथ नाइंसाफी की गयी है. दूसरा, नेपाल के विद्दुत क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के टक्कर देने के लिए चीन आ गया है. चीन बिजली कंपनी के अवसंरचना के निर्माण के बड़ी मात्रा में निवेश कर रहा है.
भारत द्वारा परियोजनाओं में की गयी देरी के कारण नेपाल के लोगों को यह भी लगता है कि नेपाल के अवसंरचना विकास को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं है. नेपाल ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया में भारत की एक छवि बनी है कि भारत केवल वादा करता है, चीन करके दिखाता है. इसलिए भारत को अपने पुराने तरीकों को बदलना होगा; परियोजनाओं को पूरा करने में तत्परता व गंभीरता दिखानी होगी. नेपाल सीमा के भारतीय हिस्से की सड़कें, बिजली, अवसंरचना का बुरा हाल है, जबकि नेपाल से लगती हुई चीन की सड़कें व पुल बिलकुल चमकते हुए मिलेंगे.
भारत-नेपाल के सांस्कृतिक-सामाजिक संबंध अत्यंत प्राचीन व प्रगाढ़ हैं. पशुपतिनाथ का मंदिर, महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी हमारी साझी विरासत है.
नेपाल की सीमाएं भारत के पांच राज्यों से लगती हैं और सभी राज्यों की सीमाएं खुली हुई हैं. साझे सांस्कृतिक मूल्य, साझी भाषा व लिपि, अंग्रेजों के उपनिवेश के खिलाफ लड़ी गयी साझी लड़ाई की विरासत होने के बावजूद भारत के पास अपने प्राचीन संस्कारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए अभी तक संस्थागत तरीके नहीं हैं, पर इस मुलाकात में दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के मध्य रामायण व बुद्धा सर्किट के विकास की बात कही है; जो पर्यटन व धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होगा. नेपाल में चीन सैकड़ों चीनी अध्ययन केंद्र, चाइना रेडियो इंटरनेशनल एफएम सेंटर खोल कर संस्थागत तरीकों से अपने सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत कर रहा है.
एक जमाना था कि नेपाल के कई राजनीतिक नेता भारत में शिक्षा प्राप्त किये होते थे; निकट भविष्य में यह हो सकता है कि नेपाल का राजनीतिक प्रभावशाली वर्ग बीजिंग यूनिवर्सिटी से शिक्षित हों.
नेपाल अब भी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. पिछले वर्ष बने संविधान में मधेशियों के साथ समानता का व्यवहार न किये जाने से नेपाल में व्यापक रोष रहा. भारत आज भी मानता है कि नेपाल का संविधान समानता, समावेशी व संवेदनशीलता पर आधारित होना चाहिए.
नेपाल में भारत विरोध का एक दुष्प्रचार चीन, पाकिस्तान, माओवादियों और वहां के कुछ राजनीतिक पार्टियों द्वारा फैलाया जाता है, जिसमें 1950 की मैत्री संधि, 1989 की भारत की कड़ाई, 2005 में रॉयल म्युटिनी के बाद हथियार देना बंद करने व पिछले साल के आर्थिक अवरोध को आधार बनाया जाता है. नेपाल में भुकंप क्षति के पुनर्निर्माण के लिए 250 मिलियन डॉलर देकर अपने पड़ोसी धर्म व गुजराल डॉक्ट्रिन का पालन कर रहा है.

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