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बिन गुरु ज्ञान कहां

गंगेश ठाकुर पत्रकार आज इंटरनेट के दौर और तकनीकी क्रांति ने हमारे ज्ञान और आदर्श के मायने बदल दिये हैं. मुझे याद है, बचपन में हिंदी की परीक्षा में एक लेख लिखना पड़ता था. विषय होता था- ‘विज्ञान वरदान या अभिशाप’. तब समझ भले कच्ची थी, पर भावनाएं सच्ची थी कि बिन गुरु ज्ञान कहां […]

गंगेश ठाकुर

पत्रकार

आज इंटरनेट के दौर और तकनीकी क्रांति ने हमारे ज्ञान और आदर्श के मायने बदल दिये हैं. मुझे याद है, बचपन में हिंदी की परीक्षा में एक लेख लिखना पड़ता था. विषय होता था- ‘विज्ञान वरदान या अभिशाप’. तब समझ भले कच्ची थी, पर भावनाएं सच्ची थी कि बिन गुरु ज्ञान कहां से पाऊं. विज्ञान तब हमारे लिए वरदान ही था और आज भी है. लेकिन, तब विज्ञान हमारे लिए ज्ञान का वरदान नहीं था.

केवल गुरु के चरणों में बैठकर ही शिक्षा ग्रहण करने का रिवाज था. तब इंटरनेट पर ज्ञान की वर्षा नहीं होती थी. तब का ज्ञान जितना भी था, वह पूर्ण था, शोधित था, सधा हुआ था और स्वीकार्य था. हम ‘गुरुर साक्षात परब्रह्म’ की परंपरा में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, जहां ज्ञान में कोई संदेह नहीं था. और तब हमारे पास गूगल गुरु नहीं था.

मेरे एक परम आदरणीय शिक्षक थे- पवन कुमार मिश्रा. ‘थे’ से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि अब वह मेरे गुरु नहीं हैं. आज मैं पहले से ज्यादा उनका सम्मान करता हूं.

आज से ज्यादा तकनीकी रूप से सक्षम उस गुरु को आज भी सहस्त्रों नमन है. दरअसल, कई बार ऐसा हुआ कि किसी सवाल को लेकर मन बेचैन हुआ और उसके जवाब को ढूंढते-ढूंढते मानसिक रूप से कमजोर होने लगता, तो देखता गुरुजी सामने खड़े हैं. वे पूछते- बताओ क्या तकलीफ है. कौन सा सवाल है जो हल नहीं हो रहा. इस तरह वे सवाल हल कराते और चले जाते.

लालटेन की रोशनी में बैठकर भाई-बहनों के साथ पढ़ाई कर रहा होता और फिर दिमाग में शैतानी खलबली मचाने लगती. लालटेन के प्रकाश में उड़नेवाले फतिंगे को पकड़कर एक-दूसरे पर फेंकना आदि. फिर अचानक पीठ पर धप्प के साथ केवल आवाज वाली थाप बजती. उस अंधेरी रात में पलटकर देखता, तो गुरुजी पीछे खड़े मिलते.

हमने एक बार गुरुजी को पूछ ही लिया कि आप हमेशा हमारी परेशानी और शैतानी के वक्त कैसे आ जाते हैं. सिर पर हाथ फेरकर उन्होंने कहा था कि बेटा मेरा नाम ‘पवन’ है. हवा का झोंका हूं. कहीं भी आ-जा सकता हूं.

तुम लोगों की परेशानी और शैतानी मेरे ही अंदर तैरकर मेरे तक पहुंचती हैं. आज भी उनका जवाब हमें गुदगुदा उठता है. क्या कोई इंटरनेट और गूगल का ज्ञानी महाराज ऐसा ज्ञान दे सकता था या आज दे सकता है?

दसवीं के परिणाम घोषित हुए और हम दोनों भाई के प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने की खबर लेकर गुरुजी ही हमारे घर आये थे. उनकी आंखों से स्नेह बरस रहा था.

हमने उनके पैर छुए, तो उन्होंने कहा था- जिंदगी में खूब तरक्की करो, लेकिन याद रखना मेरा नाम ‘पवन’ ही है और मैं हमेशा तुम लोगों के साथ रहूंगा. आज शिक्षक दिवस है. मेरी कोशिश रहती है कि किसी तरह मेरा लिखा उन तक पहुंचे और वे अपना स्नेहिल आशीर्वाद मुझे दें, ताकि मैं बाकी जिंदगी में भी सफल रहूं.

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