पांच सितंबर का दिन समाज और राष्ट्र के लिए शिक्षकों के योगदान को याद करने का दिन है. महर्षि अरविंद ने शिक्षक को राष्ट्र की संस्कृति का चतुर माली बताते हुए लिखा था कि वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींच कर उन्हें शक्ति में निर्मित करते हैं. आज वास्तविकता है कि अधिकांश शिक्षक बस अपनी नौकरी कर रहे हैं.
उन्हें हर प्रकार के गैर-शैक्षणिक कार्यों से जोड़ दिया गया है. शिक्षकों को उनके अपने कार्यालयों में ही मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है. उन्हें अपने कार्यों के लिए बाबूओं की जी हुजूरी करनी पड़ती है. अतः शिक्षकों के गौरव को एक बार फिर से बहाल करने के लिए पूरे समाज को सोचना होगा कि सुधार की शुरुआत कैसे हो.
चंदन कुमार, देवघर.