कृष्ण प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल काॅलेज में आॅक्सीजन के अभाव में पांच दिनों में पांच दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौतों के बाद शोक, क्षोभ व रोष की लहरें थामे नहीं थम रहीं. इसके बावजूद कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने द्वारा घोषित उच्चस्तरीय जांच के नतीजों का इंतजार किये बिना ही काॅलेज के प्राचार्य को निलंबित करा दिया और एेलान किया है कि दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करेंगे, जो मिसाल बन सके. मौतों से उद्वेलित छात्रों ने रविवार को गोरखपुर पहंुचने पर उन्हें काले झंडे तो दिखाये ही, कई राजनीतिक-सामाजिक संगठनों ने सोमवार को ‘गोरखपुर बंद’ कराकर भी अपना गुस्सा प्रदर्शित किया.
इस बीच अपीलें की जा रही हैं कि मामले को लेकर राजनीति करने के बजाय प्रदेश सरकार को अपनी भ्रष्ट स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए फौरन निर्णायक कदम उठाने को विवश किया जाये. इस व्यवस्था की हालत यह है कि मायावती के मुख्यमंत्री काल में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में हुए 8,500 करोड़ रुपयों के घोटाले में दो मंत्रियों व एक आइएएस अधिकारी के जेल जा चुकने के बावजूद उसकी सारी परतें उधड़नी अभी तक बाकी हैं.
मौतों पर लोगों के गुस्से का पहला और सबसे बड़ा कारण यह है कि गोरखपुर मुख्यमंत्री का गृहनगर है और माना जा रहा है कि चिराग तले ही इतना अंधेरा है, तो अन्यत्र और गहरा होगा. गत वर्ष 22 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोरखपुर जिले की सदर तहसील के खुटहन में बहुप्रचारित एम्स का शिलान्यास करने आये, तो सपना दिखा गये थे कि अब वे मस्तिष्क ज्वर से किसी भी मां की गोद सूनी नहीं होने देंगे.
लोगों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अपना वायदा निभायेंगे और मस्तिष्क ज्वर डैने फैलायेगा, तो उससे बचाव व इलाज की समुचित व्यवस्था उपलब्ध हुआ करेगी. प्रधानमंत्री का दिया वचन भी काम नहीं आयेगा, तो स्वाभाविक ही लोग भड़केंगे. पिछले साल काम नहीं आया, तो पीड़ितों को समझाया गया कि केंद्र व प्रदेश में अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण ऐसा है.
लेकिन, अब मतदाताओं द्वारा लापरवाह अखिलेश सरकार की छुट्टी के बाद भारी बहुमत से आये नये मुख्यमंत्री के रोज-ब-रोज नयी-नयी उम्मीदें जगाने के बीच मस्तिष्क ज्वर का नया सीजन आया, तो लोग आशान्वित थे कि हालात बेहतर होंगे. लेकिन, कोढ़ में खाज हो गया और कुछ लाख के बकाया भुगतान के लिए साठ से ज्यादा मरीजों की जान से खेल हो गया.
कई लोगों को अभी भी यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि चार महीनों की ही सत्ता में योगी आदित्यनाथ का इकबाल इतना कम हो गया कि उनके गृहनगर के मेडिकल काॅलेज तक में थोड़े ज्यादा कमीशन के लिए आॅक्सीजन की आपूर्ति करनेवाली कंपनी का भुगतान बदनीयतीपूर्वक रोके रखा गया, काॅलेज को प्राचार्य के बजाय उनकी पत्नी चलाती रहीं और वस्तुस्थिति से अवगत होने के बावजूद काॅलेज प्रशासन या जिलाधिकारी किसी ने भी इस बड़ी त्रासदी को टालने के लिए समय रहते कोई कदम नहीं उठाया. तब भी, जब मस्तिष्क ज्वर के मरीजों के लिए बना वार्ड मरीजों से भर गया और उसके फर्श व सीढ़ियों तक पर मरीज नजर आने लगे.
आम लोगों को यह जानकर भी गुस्सा आ रहा है कि अभी दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री मेडिकल काॅलेज के दौरे पर गये, तो उन्हें वहां ‘सब कुछ सामान्य’ मिला था और अभी भी वे आॅक्सीजन के अभाव से इनकार कर मौतों को स्वाभाविक बता रहे हंै. यह तक है जब वे मुख्यमंत्री बनने से पहले भी मस्तिष्क ज्वर के उन्मूलन के लिए अपने समर्पित होने का दावा करते रहे हैं.
मस्तिष्क ज्वर न सिर्फ गोरखपुर, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोलह जिलों की समस्या है. इन जिलों में हर साल जून से नवंबर के बीच यह ज्वर कहर बरपाता और बड़ों से ज्यादा बच्चों को शिकार बनाता है.
अपनी संतानें गंवानेवाले माताओं-पिताओं की मानें, तो इससे त्रस्त अंचल के लोगों ने अब इसको अपनी नियति-सी मान ली हैै. वे सत्तर के दशक से ही, जब इसने यहां अपने पंजे फैलाने आरंभ किये, इसे झेलते-झेलते इलाज व बचाव के उन सरकारी कर्मकांडों की असलियत जान गये हैं, जो इससे निपटने के नाम पर कभी रेड एलर्ट तो कभी उन्मूलन के राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में सामने आते हैं, लेकिन नतीजे के तौर पर ढाक के तीन पातों से ज्यादा नहीं देते.आंकड़े गवाह हैं कि मस्तिष्क ज्वर से सत्तर के दशक से अब तक इस अंचल में एक लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी है.
लेकिन, इससे भी कड़वा सच यह है कि डाॅ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने आखिरी दिनों में मस्तिष्क ज्वर के उन्मूलन के लिए जो राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाया था, उसके चली जाने के बाद न उसकी याद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आयी, न ही मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव को और न ही अब उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को. इनमें से किसी को तो इन मौतों की शर्म महसूस करनी चाहिए!