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खाना खराब है

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार आजकल जिसे देखो, खराब खाने की शिकायत करता मिलता है. कुछ दिन पहले एक सैनिक ने सेना में खराब खाना मिलने की शिकायत की थी. उसे तो खैर, नौकरी से निकाल कर समस्या का समाधान कर दिया गया. लेकिन अब कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलों में मिलनेवाला […]

सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
आजकल जिसे देखो, खराब खाने की शिकायत करता मिलता है. कुछ दिन पहले एक सैनिक ने सेना में खराब खाना मिलने की शिकायत की थी. उसे तो खैर, नौकरी से निकाल कर समस्या का समाधान कर दिया गया. लेकिन अब कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलों में मिलनेवाला खाना खराब होता है. मुझे कैग के रवैये पर आपत्ति है. वह कैग है, तो कैग ही रहे, काग बनने की कोशिश न करे.
अब भला यह भी कोई कहने की बात है कि ट्रेनों और स्टेशनों पर परोसी जा रही चीजें प्रदूषित हैं. प्रदूषण क्या कोई खराब चीज है और रेलों से बाहर क्या प्रदूषणरहित चीजें ही मिलती हैं? हम हिंदुस्तानी तो खाने की चीजें बनाते ही प्रदूषण से हैं. यह हमारा ही आविष्कार है कि हम हर तरह की गंदगी और प्रदूषण को कुशलता से खाद्य पदार्थों में बदल देते हैं. प्रदूषण न हो, तो लोग तो खा भी न पायें. बीमार पड़ जायें प्रदूषणरहित चीजें खाकर. प्रदूषण वैसे भी एक सार्वभौम और सर्वव्यापी तत्त्व है. हर चीज प्रदूषित है हमारी और हमने बहुत प्रयत्नपूर्वक उन्हें वैसा बनाया है.
हंसी आती है कैग की बातें सुन कर. कहते हैं कि रेलों में डिब्बाबंद, बोतलबंद चीजें एक्सपायरी डेट निकल जाने के बाद भी बेची जाती हैं. अरे भई, चीजों की डेट ही तो एक्सपायर हुई है, चीजें खुद तो एक्सपायर नहीं हुईं!
खाने में चूहे और तिलचट्टे घूमते नजर आना भी उसके खाने योग्य होने का जीवंत प्रमाण है. जीवंत प्रमाण होता ही वही है, जिसमें जीवित प्राणी खुद प्रमाण के तौर पर मौजूद रहते हों. कैग ने इस बात पर भी आपत्ति जतायी है कि एक ट्रेन में मुसाफिर को कटलेट का ऑर्डर देने पर रेलवे ने उसके साथ लोहे की कीलें मुफ्त में भेंट कर दीं. अब कर दीं तो कर दीं, उनकी कीमत रेलवे किसी और बहाने से यात्रियों से वसूल कर लेगा.
कैग ने यह भी कहा बताते हैं कि खाने के ठेकेदार खाने की क्वाॅलिटी और साफ-सफाई से समझौता करते हैं. समझौतावादी होना तो अच्छी बात है. ठेकेदार खाने की क्वाॅलिटी और साफ-सफाई से समझौता करते हैं, तो यात्री उसके समझौता करने की आदत से समझौता कर लेते हैं. दोनों की जिंदगी का सफर हंसी-खुशी चलता रहता है.
कैग भाई, यह भारत है, यहां बहुत लोगों को तो खराब खाना भी नहीं मिलता. ऐसे में जिन्हें वह मिलता है, उन्हें या आपको उसके खराब होने की शिकायत करने के बजाय उसके लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए. शायर अब्दुल हमीद अदम से ही कुछ सीखिये, जो अपना खाना खराब होने की शिकायत न करके खुदा का भी खाना खराब देख कर ही खुश हो जाते हैं-
दिल खुश हुआ है मस्जिद-ए-वीरां को देख कर, मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है!

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