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स्टार संस्कृति से कोहली को बचना होगा

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर जिसकी अटकलें लगायी जा रही थीं, नतीजा वही निकला और रवि शास्त्री को भारतीय टीम का कोच नियुक्त कर दिया गया. यूं तो टीम के कोच की नियुक्ति कोई बड़ी घटना नहीं है. लेकिन, जिस तरह से भारतीय टीम के कोच अनिल कुंबले की विदाई हुई और उसमें कप्तान […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
जिसकी अटकलें लगायी जा रही थीं, नतीजा वही निकला और रवि शास्त्री को भारतीय टीम का कोच नियुक्त कर दिया गया. यूं तो टीम के कोच की नियुक्ति कोई बड़ी घटना नहीं है.
लेकिन, जिस तरह से भारतीय टीम के कोच अनिल कुंबले की विदाई हुई और उसमें कप्तान विराट कोहली की भूमिका रही, उसके बाद नये कोच का चयन सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल भारतीय क्रिकेट टीम पर सुपर स्टार संस्कृति हावी होती जा रही है. टीम में कौन खिलाड़ी खेलेगा या नहीं, इस पर कप्तान कोहली की चले, यह बात समझ में आती है, लेकिन कोच कौन होगा, इसमें भी कप्तान की चले, यह अधिकारों का अतिक्रमण है. इसमें कोई शक नहीं कि कोहली शानदार खिलाड़ी हैं, लेकिन उन पर सुपर स्टार संस्कृति होती जा रही है, जो खुद उनके लिए और भारतीय क्रिकेट के लिए शुभ नहीं है.
यह दलील दी जा सकती है कि कोहली ने शास्त्री के लिए किसी से नहीं कहा और न कोई सिफारिश की. लेकिन, सत्ता प्रतिष्ठानों में कुछ बातें अलिखित भी चलती हैं. यह सब जानते हैं कि कोच के रूप में विराट कोहली की पहली पसंद रवि शास्त्री ही थे. बेशक रवि शास्त्री सक्षम व्यक्ति हैं और पहले भी वह निदेशक के तौर पर भारतीय टीम के साथ जुड़े रह चुके हैं.
उस दौरान उन्होंने अपनी पहचान कप्तान और टीम के प्रेरक के रूप में बनायी थी. लेकिन, ऐसा आरोप है कि वह गेंदबाजी और बल्लेबाजी में सुधार के लिए खिलाड़ियों को कोई खास सलाह नहीं देते हैं. अनुशासन के मामले में भी उन्होंने काफी ढील छोड़ रखी थी. खिलाड़ी समय से प्रैक्टिस के लिए मैदान पर आयें, देर रात की पार्टियों से परहेज करें, इन पर उन्होंने ज्यादा लगाम नहीं लगायी थी. दूसरी ओर कुंबले इस मामले में खासे सख्त थे.
खिलाड़ियों को सलाह देने से नहीं हिचकते थे. प्रैक्टिस के लिए कोहली से लेकर अन्य सभी खिलाड़ियों को मैदान पर समय से आना होगा, इस पर वह कोई समझौता करने को तैयार नहीं थे. बताया जाता है कि कोहली और कुंबले में मतभेद की मुख्य वजह यही थी. रवि शास्त्री की सहायता के लिए बॉलिंग कोच के रूप में जहीर खान और बैटिंग कोच के रूप में राहुल द्रविड़ को रखा गया है. अब स्थिति यह है कि टीम में एक नहीं तीन कोच हैं और सभी दिग्गज हैं. इसको लेकर भी बखेड़ा खड़ा हो गया है. कोच रवि शास्त्री ने इन नियुक्तियों पर आपत्ति जतायी है.
उनका कहना है कि यह अधिकार कोच का है कि वह अपने पसंदीदा सहयोगियों की नियुक्ति करे. दरअसल क्रिकेट एडवायजरी कमेटी के सौरभ गांगुली और नवनियुक्त कोच रवि शास्त्री के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. खेल के जानकारों का मानना है कि शास्त्री को कोच बनवाने के अलावा गांगुली के पास और कोई विकल्प नहीं था. लेकिन गांगुली ने शास्त्री के आभामंडल को कम करने के लिए जहीर खान और राहुल द्रविड़ को बॉलिंग और बैटिंग कोच नियुक्त करवा दिया. ऐसे शह और मात के खेल का नतीजा अच्छा नहीं निकलने वाला है. इससे नुकसान किसी और का नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेट का ही होगा.
दूसरी ओर क्रिकेट एडवायजरी कमेटी की स्थिति यह है कि वह एक दिन कोच के नाम की घोषणा इसलिए नहीं कर पायी क्योंकि विराट कोहली अमेरिका में थे और कमेटी के सदस्यों की उनसे बात नहीं हो पा रही थी. एडवायजरी कमेटी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि विराट कोहली के अमेरिका से लौटने के बाद उनसे बात करने के बाद नये कोच की घोषणा की जायेगी.
दूसरी ओर कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (सीओए) के चेयरमैन विनोद राय कह रहे थे कि नये कोच का ऐलान तत्काल किया जाये. कुछ समय पहले जाने माने लेखक रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट एडवायजरी कमेटी से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अपने इस्तीफे में बीसीसीआई की मौजूदा व्यवस्थाओं पर कई संगीन आरोप लगाये थे. गुहा ने कहा था कि एक खिलाड़ी के कारण अनिल कुंबले के कार्यकाल को आगे नहीं बढ़ाया गया, जबकि कोच के रूप में उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. उनका स्पष्ट तौर से इशारा विराट कोहली की ओर था.
गुहा ने कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम के भीतर सुपर स्टार संस्कृति है. मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूं. जब भी कोई खिलाड़ी थोड़ा अच्छा प्रदर्शन करता है, उसे इतना चढ़ा दिया जाता है कि वह आपे से बाहर हो जाता है. उसकी तारीफ में इतने कसीदे पढ़े जाते हैं कि किसी भी खिलाड़ी का दिमाग खराब हो जाये. मैं मानता हूं कि इसमें मीडिया भी बराबर का दोषी है, खिलाड़ी को सुपर स्टार बनाने में उसकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है.
रही-सही कसर तब पूरी हो जाती है, जब व्यवस्था ऐसे सुपर स्टार को फैसले में वीटो पावर दे देती है. इस तरह की वीटो पावर किसी भी देश के खिलाड़ी को नहीं दी जाती है. रामचंद्र गुहा ने तो एक ओर खतरे की ओर इशारा किया था कि अगर बीसीसीआई इन सुपर स्टार खिलाड़ियों के सामने ऐसी ही झुकती रही तो मुमकिन है कि अगला नंबर उनका हो. खिलाड़ी उन्हें ही बदलने के लिए अपना हस्तक्षेप करना शुरू कर देंगे. नतीजा यह होगा कि बीसीसीआई को चलाना मुश्किल हो जाएगा.
आप इस बात का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि ये स्टार खिलाड़ी कितने शक्तिशाली हैं और क्या कुछ करने की क्षमता रखते हैं. कुछ समय पहले आइपीएल कमेंट्री पैनल से हर्षा भोगले को हटा दिया गया था. उनका कसूर केवल इतना था कि उन्होंने कुछ स्टार खिलाड़ियों के खेल पर सवाल उठा दिये थे. नतीजतन उन खिलाड़ियों ने हर्षा भोगले को कमेंट्री पैनल से ही चलता करवा दिया. बड़ी मुश्किल से हर्षा भोगले की कमेंट्री में वापसी हुई है.
दूसरी ओर सचिन तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी का उदाहरण हमारे सामने है. जिनका विवादों से दूर दूर तक नाता नहीं रहा है. उनका फोकस हमेशा खेल पर रहा. पार्टियों और विवादों से वह हमेशा बचते रहे ताकि एकाग्रता पर असर न पड़े. यही वजह है कि वे इतनी लंबी पारी खेल पाये.
ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि कैसे प्रतिभावान खिलाड़ियों ने अपना कैरियर चौपट किया और गुमनामी के अंधेरे में चले गये. विराट कोहली शानदार खिलाड़ी हैं और उनमें ऊंचाइयां हासिल करने की क्षमता है. अगर उन्हें लंबी पारी खेलनी है तो उन्हें इन झमेलों से बचना होगा और केवल खेल पर फोकस करना होगा.

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