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भारत की पश्चिम एशिया नीति

डॉ सलीम अहमद असिस्टेंट प्रोफेसर, गलगोटियास यूनिवर्सिटी s.ahmad982@gmail.com भारत की विदेश नीति का निर्माण भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के चमत्कारी नेतृत्व में हुआ. उन्होंने फिलिस्तीन-इस्राइल संघर्ष में फिलिस्तीनियों की हिमायत की. उनके पश्चात कांग्रेस के नेतृत्व में बननेवाली सरकारों ने भी इसी नीति का अनुसरण किया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र […]

डॉ सलीम अहमद
असिस्टेंट प्रोफेसर, गलगोटियास यूनिवर्सिटी
s.ahmad982@gmail.com
भारत की विदेश नीति का निर्माण भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के चमत्कारी नेतृत्व में हुआ. उन्होंने फिलिस्तीन-इस्राइल संघर्ष में फिलिस्तीनियों की हिमायत की. उनके पश्चात कांग्रेस के नेतृत्व में बननेवाली सरकारों ने भी इसी नीति का अनुसरण किया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का गठन के बाद से ही भारत-इस्राइल संबंधों में गुणात्मक विकास हो रहा है.
साथ ही, दोनों राष्ट्रों की सरकारें धार्मिक रूढ़िवाद से ग्रस्त घोर राष्ट्रवादी हैं, घरेलू चुनौतियां एवं प्रायोजित इसलामिक आतंकवाद भी दोनों देशों के मध्य सामान्य मुद्दे हैं. विचारों का सम्मान होना दोनों राष्ट्रों के संबंधों को मजबूत आधार प्रदान करता है. मोदी की इस्राइल यात्रा के दौरान, दोनों देशों के मध्य सात क्षेत्रों में समझौते हुए, जिनमें मुख्य रूप से अंतरिक्ष, कृषि, एवं जल प्रबंधन आदि शामिल हैं.
भारत-इस्राइल के मध्य राजनयिक संबंधों को आरंभ हुए 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं और यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यहूदी राज्य की पहली यात्रा थी. इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने रेड कारपेट स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को ‘आपका स्वागत है मेरे दोस्त’ कह कर संबोधित किया, जो कि भारत-इस्राइल संबंधों में बढ़ रही प्रगाढ़ता को दर्शाता है.
साथ ही, नेतन्याहू ने यह भी कहा कि ‘भारत-इस्राइल संबंध स्वर्ग में बने हैं’. मजेदार बात यह है कि अभी तक भारत की ओर से जितनी भी यहूदी राज्य की आधिकारिक यात्राएं की गयी हैं, उनमे फिलिस्तीन का दौरा भी शामिल है या फिलिस्तीनी अथॉरिटी के अध्यक्ष से भी मुलाकात की गयी है. लेकिन, मोदी की इस्राइल यात्रा के दौरान, इस बात का खास तौर पर ध्यान रखा गया है कि यह सिर्फ और सिर्फ यहूदी राज्य की यात्रा होगी. इसमें फिलिस्तीन को शामिल नहीं किया गया. पीएम मोदी के ठहरने का इंतजाम किंग डेविड होटल में किया गया था, जो रामल्लाह से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन भारत-इस्राइल सबंधों को ध्यान में रखते हुए रामल्लाह को नजरंदाज कर दिया गया. यह भारत की फिलिस्तीनी नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है. इससे यह बात जाहिर होती है कि भारत फिलिस्तीन और इस्राइल दोनों देशों को अलग-अलग करके देख रहा है.
साथ ही, भारत ने इस मिथक को भी तोड़ दिया कि यदि भारत इस्राइल के साथ संबंधों को बढ़ाता है, तो इसका सीधा प्रभाव फिलिस्तीन पर पड़ता है या यूं कहें अगर फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करता है, तो इसका प्रभाव भारत-इस्राइल संबंधों पर पड़ता है. फलतः यह भारत की संतुलित राजनयिक नीति का परिणाम है, जिससे आज भारत के संबंध दोनों देशों के साथ मजबूत हो रहे हैं. फिलिस्तीन के राष्ट्राध्यक्ष ने भी प्रत्यक्ष रूप से फिलिस्तीन-इस्राइल समस्या को हल करने के लिए भारत को मध्यस्थ की भूमिका निभाने का आग्रह किया है.
हाल ही में, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आये थे, जिसका उद्देश्य भारत-फिलिस्तीन के मध्य संबंधों में फिर से गर्मजोशी लाना था, मोदी ने फिलिस्तीन-इस्राइल संघर्ष के ‘जल्दी और स्थायी हल’ निकालने की उम्मीद दिलायी और कहा कि ‘भारत सार्वभौम, स्वतंत्र, एकजुट एवं व्यवहार्य फिलिस्तीन की उम्मीद करता है, जो इस्राइल के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व’ के साथ रह सके. लेकिन पीएम मोदी ने ‘इस्ट जेरूसलम’ को फिलिस्तीनी राज्य की राजधानी बनानेवाले मुद्दे को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की, जो फिलिस्तीन-इस्राइल के मध्य महत्वपूर्ण मुद्दा है. यह बात भी गौर करनेवाली है कि मोदी ने अपनी इस्राइल यात्रा के दौरान फिलिस्तीनी समस्या को जान-बूझ कर नजरंदाज किया, जो भारत की पश्चिम एशिया नीति में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है. आज पश्चिम एशिया के सभी देशों के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं.
फिलिस्तीन हमेशा से चाहता है कि फिलिस्तीन-इस्राइल संघर्ष को हल करने के लिए भारत हस्तक्षेप करे, लेकिन भारत ने इस्राइल के साथ मेल खा रहे साझा-रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए उचित दूरी बनाये रखी. भारत को अल्प अवधि लाभ के लिए विचारधारा के साथ समझौता नहीं करना चाहिए, बल्कि दीर्घकालिक लाभ को केंद्रित करते हुए विचारधारा का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए. विद्वानों का मानना है कि इस्राइल से भारत जो रक्षा उपकरण खरीद रहा है, उससे यहूदी राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है.
यहूदी राज्य की रीढ़ का मजबूत होना फिलिस्तीनियों की स्थिति को कमजोर करता है. भारत के लिए जरूरी है कि फिलिस्तीन-इस्राइल समस्या का दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करते हुए इस्राइल के साथ संबंधों को विकसित करे. प्रधानमंत्री मोदी का रामल्लाह की यात्रा न करना, भारत की पश्चिम एशिया नीति में बड़े बदलाव का संकेत है, जो इस्राइली स्थिति को प्राथमिकता देना दिखाता है.

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