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गौरैय्या का घर

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार सवेरे से खूब बारिश हुई थी और अब तेज धूप खिली थी. पार्क में गौरैय्या और गिलहरियों की उठापटक जारी थी. इधर–उधर छिटके दानों या घास में मौजूद कीड़ों को गौरैय्या खाने आतीं, तो गिलहरियां दूर तक उनका पीछा करतीं. एक गौरैय्या कुछ दूर तक तो पांव–पांव चली फिर एक झटके […]

क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
सवेरे से खूब बारिश हुई थी और अब तेज धूप खिली थी. पार्क में गौरैय्या और गिलहरियों की उठापटक जारी थी. इधर–उधर छिटके दानों या घास में मौजूद कीड़ों को गौरैय्या खाने आतीं, तो गिलहरियां दूर तक उनका पीछा करतीं. एक गौरैय्या कुछ दूर तक तो पांव–पांव चली फिर एक झटके में उड़ गयी. जैसे गिलहरी को चिढ़ा रही हो-मुझे पकड़ना है, तो मेरी तरह उड़.
पार्क के कोने में एक छोटे से गड्ढे में पानी भर गया था. एक गौरैय्या उसमें मजे से पंख फड़फड़ा कर नहा रही थी और बारिश के आने का उत्सव मना रही थी. इससे पहले एक दिन पार्क के किनारे की मिट्टी में कूद-कूद कर धूल स्नान करते देखा था. विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे ये चिड़ियां अपने पंखों में फंसे छोटे–मोटे कीड़े-मकोड़ों को निकालती हैं.
खुद को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि आज भी गौरैय्या को देख पाती हूं. वरना तो अब यह घरेलू चिड़िया लुप्त हो रही है. बताया जाता है कि इस चिड़िया की जनसंख्या फिलहाल 85 प्रतिशत कम हो गयी है. दुनियाभर में इसे बचाने के प्रयास हो रहे हैं. 20 मार्च को इसी कारण से वर्ल्ड स्पैरो डे मनाया जाता है. अपने यहां दिल्ली और बिहार का राज्य पक्षी भी इसे बनाया गया है.
बचपन में तो गौरैय्या को घर-घर में घोंसले बनाते देखा है. घर के लोग इनके अंडे, बच्चों की रक्षा अपने परिवार के सदस्यों की तरह करते थे. पुताई के वक्त भी इनके घोंसलों को सावधानी से उतार कर एक तरफ रख दिया जाता था और बाद में उसी जगह फिर से रख देते थे.
घर के बच्चों को इनके अंडे-बच्चे छूने की खास मनाही रहती थी, क्योंकि मान्यता थी कि अगर अंडे में आदमी की खुशबू आ जाये, तो गौरैय्या उसे नीचे गिरा कर तोड़ देती है. वैसे यह बात भी कितनी अजीब थी कि घर भी वहीं बनाती थी, जहां आदमियों का बसेरा हो, मगर अपने अंडे–बच्चों का आदमियों को छूना मना था.
उन दिनों मां, चाची, ताई, बुआ जब आंगन में बैठ कर गेहूं को बीनती-फटकती थीं, तो इन चिड़ियों के पौ-बारह हो जाते थे. झुंड-के-झुंड आसपास मंडराते थे जिससे कि मौका मिलते ही अन्न के दाने खा सकें.
लेकिन अब तो घर में आटे के पैकेट आते हैं. न अब पहले जैसे आंगन रहे, जहां गौरैय्या आकर दाने चुग सकें. फिर घर भी अब ऐसे खिड़कियों, मोखे वाले नहीं रहे, जहां से गौरैय्या आसानी से घर में प्रवेश कर सकें और अपने घोंसले बना सकें. इसके अलावा दानों और इनके खाने लायक चीजों में इतने कीटनाशक हैं कि जिन्हें खाने से इनकी मौत हो भी जाती है. मोबाइल टावर्स से भी इन्हें बहुत खतरा है. आखिर इस पक्षी को कैसे बचायें!

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