।। पुष्परंजन।।
(ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
आप अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक की वेबसाइट खोलिये, उसके एक कोने में मोदी के दीदार हो जायेंगे. ऐसे विज्ञापनों ने दुनिया भर में भारतीय चुनाव के बारे में दिलचस्पी बढ़ा दी है. प्रवासी भारतीय मंत्रालय ने 2012 में दो करोड़, 19 लाख, नौ हजार 875 भारतीयों (एनआरआइ और पीआइओ) के विदेश में प्रवास किये जाने का ब्योरा दिया था. मौका चुनाव का है, इसलिए द ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी (ओएफबीजेपी) के सदस्य सोशल मीडिया के जरिये मतदाताओं तक अपनी पहुंच बना रहे हैं, और इससे मुकाबले के लिए आम आदमी पार्टी भी उसी हथियार का इस्तेमाल कर रही है.
ओएफबीजेपी की अमेरिकी शाखा के अध्यक्ष चंद्रकांत पटेल ने कहा कि भारत में इस बार ऐतिहासिक चुनाव होने जा रहा है, जिसके प्रचार के लिए पूरे उत्तर-दक्षिण अमेरिकी देशों में भारतीय मूल के मतदाताओं से संपर्क किया जा रहा है. इस महीने वाशिंगटन डीसी में चाय पर चर्चा और नमो चाय पार्टी नाम से चार ऐसी चुनावी बैठकें ओएफबीजेपी ने आयोजित करायीं. आप के अमेरिकी प्रतिनिधि प्राण कुरूप चाय पिलाने नहीं, बल्कि पैसा उगाहने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं. होली के दिन माइ आम आदमी पार्टी डॉट ओआरजी लांच हुआ था.
तब एक दिन में अमेरिका से 55 लाख का चंदा मिला. वाशिंगटन डीसी में वरिष्ठ पत्रकार गुलशन मधुर मानते हैं कि आप का ग्राफ अमेरिका में तेजी से गिरा है, जिससे चंदा देनेवाले अब उतने उत्साह में नहीं हैं. आप के बारे में अमेरिका में आकलन है कि शायद सड़क की राजनीति करनेवाले नेता कुछ सीटें जीत कर भारत में राजनीतिक ध्रुवीकरण का हिस्सा बन पायेंगे.
भारतीय प्रवासी मंत्रालय के पास दुनिया भर में फैले एनआरआइ और पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन (पीआइओ) व ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआइ) की सूची है, उनसे संपर्क के लिए मंत्रलय के पास इमेल आइडी और फोन नंबर हैं.
क्या यूपीए-2 के नेता इन संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब इस देश का मतदाता चुनाव आयोग के जरिये तो चाहेगा ही. इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस (आइएनओसी) अमेरिका-कनाडा की उन तमाम वेबसाइट सेवादाताओं के संपर्क में है, जो भारत में जायज-नाजायज तरीके से अपनी वेबसाइट चला रहे हैं. इसके अध्यक्ष जार्ज अब्राहम कहते हैं कि हम सोशल मीडिया पर विज्ञापन दे रहे हैं. एफडीआइ, एच-वन वीजा, धर्मनिरपेक्षता, प्रवासी भारतीयों की समस्याएं और समाधान कांग्रेस के एजेंडे में है. यहां के अखबारों में हमारा विज्ञापन जा रहा है.
चुनाव प्रचार के लिए फोन, इमेल का हम प्रयोग कर रहे हैं, ताकि कांग्रेस की छवि विदेश स्थित भारतीय मतदाताओं के बीच बन सके. जाहिर है, इन साधनों का प्रयोग मुफ्त में नहीं हो रहा है. तो क्या इनसे संबंधित खर्चो से भाजपा, कांग्रेस या आप चुनाव आयोग को अवगत करायेगी? अब तक किसी पार्टी ने इसका खुलासा नहीं किया है कि दुनिया भर में कितनी वेबसाइटों पर उनका चुनाव प्रचार चल रहा है और रोज इमेल और फोन के जरिये विदेश स्थित कितने मतदाताओं से संपर्क किया जा रहा है. इन दिनों चुनाव प्रचार के लिए नेता विदेश यात्राएं भी कर रहे हैं. क्या उनके शाही खर्च का ब्योरा चुनाव आयोग को भेजा जायेगा?
पश्चिमी यूरोप, स्कैडेनेवियाई देशों और स्विट्जरलैंड में लगभग अमेरिका जैसा सूरतेहाल है. फाउंडेशन फॉर इंडियन डायसपोरा यूरोप और इंडियन डायसपोरा जैसी संस्थाएं इन दिनों चुनावी रंग में हैं. इनके माध्यम से कितने पैसे चुनाव में सहयोग के लिए जा रहे हैं, इसका ब्योरा अपने यहां की पार्टियां ही दे सकती हैं. लेकिन मध्य-पूर्व व अफ्रीकी देशों से हवाला के जरिये भारतीय दलों को जो पैसा भेजा जा रहा है, उसकी जानकारी कैसे हासिल होगी? पाकिस्तान से किसे और क्यों मदद मिल रही है, यह कहानी दिलचस्प है. पाकिस्तान से भेजे जा रहे इमेल संदेश, वहां की सोशल मीडिया और वेब अखबारों को मॉनीटर करने के लिए भारतीय खुफिया की साइबर शाखा दिन-रात एक किये हुए है. पाकिस्तान में सियासत करनेवाले नेता और कठोरपंथ की दुकान चलानेवाले मुल्ला लगभग इससे इत्तेफाक रखते हैं कि भारत में एक मजबूत छवि वाले प्रधानमंत्री का बनना उसे नुकसान पहुंचा सकता है.
जर्मन मीडिया हाउस डॉयचेवेले ने भारतीय चुनाव के हवाले से पाकिस्तान के हर सूबे का सर्वे किया और वहां पर लोगों की प्रतिक्रिया ली. कराची के एक ड्राइवर आसिफ बाजवा ने डॉयचेवेले से कहा, मोदी एक मॉन्स्टर (दैत्य) है, जो हजारों गुजराती मुसलमानों की हत्या के लिए जिम्मेवार है. यदि मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो पाकिस्तान को भारत से संबंध तोड़ लेना चाहिए.
कराची के ही एक पत्रकार अबूजार शरीफ ने कहा कि मोदी का एक प्रभावशाली नेता के रूप में अभ्युदय दक्षिण एशिया के लिए घातक होगा और अगर मोदी आते हैं तो हमारे देश में कठोरपंथी और भी मजबूत होंगे. पाकिस्तानी थिंक टैंक का एक बड़ा खेमा (जिसमें नजम सेठी, सैयद तारिक पीरजादा शामिल हैं) महसूस करता है कि मोदी के सत्ता में आते ही तालिबान और उसके हम-मिजाज कठोरपंथियों का भारत विरोधी एजेंडा और मजबूती के साथ सामने आयेगा. तब क्या कश्मीर का जिन्न बोतल से बाहर निकालने की तैयारी सीमा पार से हो जायेगी? लेकिन यह भी तो संभव है कि मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी की तरह मीनार-ए-पाकिस्तान पर जायें और शांति वार्ता करें. तो क्या इसके लिए संघ की सहमति मिल जायेगी?
मोदी, कश्मीर पर क्या सोचते हैं, पाकिस्तान के बारे में उनकी क्या योजना है? इन तमाम बातों को लेकर सीमा पार जिज्ञासा है. एक बात और कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य में अपना अक्स ढूंढ रहे हैं. पाकिस्तानी शहजादा नहीं चाहते कि कोई चायवाला सत्ता की कमान संभाले.
पाकिस्तान में जिस सोच के लोग मोदी का विरोध कर रहे हैं, उससे तालमेल बिठाने की चेष्टा पूरे दक्षिण एशिया में की जा रही है, जिसमें बांग्लादेश, मालदीव जैसे मुसलिम बहुल देश हैं. नेपाल में राजा समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी चाहती है कि मोदी आयें और नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास हो, ताकि विष्णु के छद्मावतार ज्ञानेंद्र फिर से नरेश बनें. भारत-नेपाल की जनता के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता वोट के फैसले को प्रभावित करता है. नेपाल के लोगों को आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का चेहरा इस चुनावी परिदृश्य से क्यों गायब है!