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आपातकाल के दौरान हाईकोर्ट ने साहस दिखाया लेकिन SC उम्मीदों पर विफल रहा : रविशंकर प्रसाद

नयी दिल्ली:न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला जारी है. केंद्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर के तल्ख टिप्पणी पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने असहमति जतायी है. वहीं रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आपातकाल के दौरान सभी हाईकोर्ट ने साहस व संकल्प दिखाया लेकिन सुप्रीम कोर्ट हमारी उम्मीदों […]

नयी दिल्ली:न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला जारी है. केंद्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर के तल्ख टिप्पणी पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने असहमति जतायी है. वहीं रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आपातकाल के दौरान सभी हाईकोर्ट ने साहस व संकल्प दिखाया लेकिन सुप्रीम कोर्ट हमारी उम्मीदों पर विफल रहा.उन्होंने कहा कि अदालतें अवश्य ही सरकार के आदेशों को खारिज करें लेकिन शासन अवश्य ही उन लोगों के हाथों में रहना चाहिए जिन्हें शासन करने के लिए चुना गया है

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने विधी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ‘न्यायपालिका समेत सभी अपनी लक्ष्मणरेखा की पहचान करें और आत्ममंथन के लिए तैयार रहें. इससे पहले चीफ जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर ने एक बार फिर आज उच्च न्यायालयोें और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया था. टीसी एस ठाकुर के इस बयान पर कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की.

प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पांच सौ पद रिक्त हैं. ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे परंतु ऐसा नहीं है. इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिये न्यायाधीश उपलब्ध नहीं है. बडी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिये इसमें हस्तक्षेप करेगी।’ न्यायमूर्ति ठाकुर यहां केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.

प्रधान न्यायाधीश के इस कथन से असहमति व्यक्त करते हुये विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं. इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गयी थीं.

रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘‘हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं. इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है. सन् 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं. अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है. यह ऐसा मामला है जिसपर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है.’ कानून मंत्री ने कहा, ‘‘जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत् प्रक्रिया है.

जहां तक नियुक्तियों का मामला है तो उच्चतम न्यायालय का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्य परक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाये और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी उच्चतम न्यायालय का जवाब मिलना शेष है.’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधिकरणों में भी ‘‘मानवशक्ति का अभाव’ है और वे भी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे हैं जिसकी वजह सें मामले पांच से सात साल तक लंबित हैं. इसकी वजह से शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की इन अर्द्धशासी न्यायिक निकायों की अध्यक्षता करने में दिलचस्पी नहीं है

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