नयी दिल्ली : बिहार, झारखंड, असम, ओडिशा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों की 10 प्रतिशत से भी कम आबादी को पाइप के जरिए नलों से जल आपूर्ति उपलब्ध है जबकि आजादी के बाद से ग्रामीण बसावटों को सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल देने के उद्देश्य से 1,65,000 करोड़ रुपयों से अधिक खर्च किए जा चुके हैं.
देश की एक दर्दनाक तस्वीर पेश करते हुए संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में यह जानकारी देने के साथ बताया गया है कि मणिपुर के 40.70, मेघालय के 37.90, झारखंड के 36.40 और मध्यप्रदेश के 36.10 प्रतिशत परिवार अभी भी 500 मीटर से अधिक दूरी से पेयजल लेने जाते हैं. देश के कई अन्य राज्यों में भी कमो-बेश ऐसी ही स्थिति है. रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी गांवों को 2022 तक 100 प्रतिशत संपूर्ण स्वच्छ यानी ‘निर्मल भारत’ बना देने के लक्ष्य को पाना मुश्किल लग रहा है कि क्योंकि इससे संबंधित न सिर्फ कार्य निष्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत की कमी आई बल्कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में संबंधित मंत्रालय की निधियों में भी कटौती करदी गई है.
समिति ने कहा कि निर्मल भारत अभियान के उद्देश्यों को प्राप्त करने के रास्ते में आ रहा प्रमुख अवरोध यह है कि देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग खुले में शौच की प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता को ही नहीं समझता है. इसने कहा कि इस आबादी को खुले में शौच से होने वाली समस्याओं की जानकारी नहीं है. इसीलिए शौचालय का निर्माण करना अक्सर उन लोगों की भी प्राथमिकता नहीं होती है जो शौचालय बनाने और उसका उपयोग कर सकने की हैसियत रखते हैं. इसने कहा कि ऐसे में ग्रामीण लोगों में व्यवहार संबंधी बदलाव लाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि जागरुकता पैदा किए बिना प्रोत्साहन राशि बढ़ाने पर भी इस समुदाय से शौचालयों बनाने की मांग की तनिक भी अपेक्षा नहीं की जा सकती है.