नयी दिल्ली : समान नागरिक संहिता से जुडी विधि आयोग की प्रश्नावली का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा बहिष्कार करने के फैसले के बाद खडे हुए विवाद के बीच देश के कुछ मुस्लिम सांसदों ने केंद्र की मोदी सरकार पर इस मामले को लेकर ‘राजनीति करने’ का आरोप लगाया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम संगठनों को ‘आक्रामक रुख’ नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि भारत जैसे विविधिताओं से भरे देश में इस तरह के किसी कानून को ‘थोपना लगभग असंभव है. ‘
पिछले दिनों विधि आयोग ने एक प्रश्नावली सामने रखी जिसमें समान नागरिक संहिता और तीन तलाक सहित कुछ बिंदुओं पर लोगों की राय मांगी गई है. बीते गुरुवार को पर्सनल लॉ बोर्ड तथा कुछ अन्य प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने इस प्रश्नावली का बहिष्कार करने का फैसला किया और कहा कि अगर देश में समान नागरिक संहिता को लागू किया गया तो यह सभी को ‘एक रंग में रंगने’ जैसा होगा जो देश के बहुलवाद और विविधता के लिए खतरनाक होगा.
जदयू सांसद अंसारी ने यह भी कहा कि मुस्लिम संगठनों को समान नागरिक संहिता के मामले पर ‘आक्रामक प्रतिक्रिया’ नहीं व्यक्त करनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले पर मुस्लिम संगठनों को आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करनी चाहिए. उनको उकसाया जा रहा है और अगर वे इस तरह से आक्रामक प्रतिक्रिया करेंगे तो यह मामला और गरमायेगा और इसका उन लोगों को राजनीतिक फायदा होगा जो इस कोशिश में हैं.’ कांग्रेस के लोकसभा सदस्य असरारुल हक कासमी ने कहा, ‘‘समान आचार संहिता की बहस में पडने की बजाय सरकार को देश की तरक्की पर ध्यान देना चाहिए. जो चीज असंभव है उस पर बेवजह बहस खडी नहीं करनी चाहिए. राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह का विवाद पहले भी खडा किया जा चुका है.’
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने बीते शनिवार को कहा था कि समान नागकि संहिता और एक साथ तीन तलाक दो अलग मुद्दे हैं तथा मुख्य मुद्दा लैंगिक न्याय का और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव खत्म करने का है. उन्होंने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोपा नहीं जाएगा. नायडू ने कहा, ‘‘आप (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) बहस में शामिल होइए. प्रबुद्ध बहस होने दीजिए और आप अपना नजरिया रखिए. एक आम सहमति बनने दीजिए। आप प्रधानमंत्री का नाम बीच में लाने और उन्हें तानाशाह कहने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?’