मुंबई : एक ऐतिहासिक फैसले में बंबई उच्च न्यायालय ने हाजी अली दरगाह के मजार के हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध आज हटा लिया. अदालत ने कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है और ट्रस्ट को सार्वजनिक इबादत स्थल में महिलाओं के प्रवेश को रोकने का अधिकार नहीं है. आदेश की मुख्य बातें.
1. न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कहा, ‘‘हम कहते हैं कि दरगाह ट्रस्ट द्वारा हाजी अली दरगाह के मजार के हिस्से में महिलाओं के प्रवेश को रोकना संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. महिलाओं को पुरुषों की तरह ही मजार के हिस्से में प्रवेश की इजाजत होनी चाहिए.”
2. अदालत ने हाजी अली दरगाह ट्रस्ट की याचिका पर आदेश पर छह सप्ताह के लिए रोक लगा दी. ट्रस्ट उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना चाहता है.
3. दो महिलाएं जकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने जनहित याचिका दायर कर साल 2012 से दरगाह के मजार के हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी. ये महिलाएं एनजीओ भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन से जुड़ी हैं.
4. ‘‘राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह ट्रस्ट उस पूजन स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएगा.”
5. पीठ ने कहा कि ट्रस्ट को किसी व्यक्ति या समूह के धार्मिक आचरण के तरीके में बदलाव या संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है. इसने यह भी गौर किया कि ‘ट्रस्ट का प्रबंधन करने का अधिकार धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता पर हावी नहीं हो सकता.”
6. अदालत ने 56 पन्नों में अपना फैसले सुनाया. ‘‘ट्रस्ट को अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की आड में सार्वजनिक पूजन स्थल पर महिलाओं के प्रवेश में भेदभाव का कोई अधिकार नहीं है और राज्य को नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 समेत अन्य प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों की लैंगिक आधार पर भेदभाव से रक्षा सुनिश्चित करनी होगी.”
7. ट्रस्ट ने कोर्ट के सामने अपनी दलिल रखी. जिसमें कहा गया, पुरुष मुस्लिम संत की मजार के करीब महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देना इस्लाम में पाप है. ट्रस्ट ने अपने दावे के समर्थन में कुरान की कुछ आयतें भी उद्धृत की थीं और सौंपी थीं.
8. ट्रस्ट के दलिलों पर अदालत ने कहा, ‘‘उपरोक्त बयान देना और आयतों को उद्धृत करना पर्याप्त नहीं है, खासतौर पर जब महिलाओं को 2012 तक मजार तक जाने दिया जाता था. उन आयतों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दर्शाता है कि इस्लाम दरगाह, मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत नहीं देता है और उनका प्रवेश इस्लाम में पाप है.”
9. अदालत ने कहा, ‘‘धर्म का अनिवार्य हिस्सा से मतलब है कि वो मुख्य मान्यता जिसपर किसी धर्म की नींव रखी गई है और अनिवार्य आचरण से आशय वैसे आचरण से जो किसी धार्मिक मान्यता को मानने के लिए बुनियादी हैं. परीक्षण इस बात का निर्धारण करने के लिए है कि क्या कोई आचरण धर्म के लिए अनिवार्य है और इस बात पता लगाना है कि क्या इस आचरण के बिना धर्म की प्रकृति बदलेगी.”
10. अदालत ने कहा कि ट्रस्ट प्रतिबंध को कानूनी तौर पर या अन्य तरीके से उचित ठहराने में सक्षम नहीं रहा है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिबंध इस्लाम का अनिवार्य और अभिन्न हिस्सा है और अगर उस आचरण को ले लिया गया तो धर्म की प्रकृति में बुनियादी बदलाव आ जाएगा.
11. ट्रस्ट ने दावा किया था कि प्रतिबंध उच्चतम न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए लगाया गया था जिसमें इबादत स्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न नहीं हो इस बात को सुनिश्चित करने के लिए सख्त निर्देश जारी किए गए थे. अदालत ने कहा कि ट्रस्ट की यह दलील पूरी तरह अनुपयुक्त, गलत समझ पर आधारित और संदर्भ से परे है.
12. अदालत ने कहा, ‘‘ट्रस्ट महिलाओं की यौन उत्पीड़न से सुरक्षा सुनिश्चित करने के नाम पर प्रतिबंध को उचित नहीं ठहरा सकता और हाजी अली दरगाह के मजार में महिलाओं के प्रवेश को नहीं रोक सकता.” अदालत ने कहा कि ट्रस्ट को महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने की हमेशा स्वतंत्रता है. लेकिन ऐसा मजार तक प्रवेश पर रोक लगाकर नहीं बल्कि कारगर कदम उठाकर और उनकी सुरक्षा के लिए प्रावधान करके किया जाना चाहिए. मिसाल के तौर पर महिलाओं और पुरुषों की अलग कतार लगाई जानी चाहिए, जैसा पहले होता था.
13. न्यास की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब मेमन ने पहले कहा था, ‘‘सउदी अरब में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है. इबादत करने के लिए उनके लिए अलग स्थान की व्यवस्था है. हमने (न्यास) उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है. यह नियम केवल उनकी सुरक्षा के लिए है. न्यास केवल दरगाह का प्रबंध ही नहीं देखता है बल्कि धर्म से संबंधित मामलों को भी देखता है.