मुंबई : वर्ष 2013 में महाराष्ट्र का राजनैतिक परिदृश्य हलचलों से भरा रहा जहां शरद पवार की राकांपा कांग्रेस को मात देने की कोशिश में लगी रही वहीं गन्ना किसानों का आंदोलन और सिंचाई परियोजनाओं में कथित भ्रष्टाचार के कारण सत्ता और विपक्ष के बीच खींचतान भी सुर्खियों में रहा.
अंध विश्वास के खिलाफ अभियान चलाने वाले और काला जादू विरोधी विधेयक पारित करने का दबाव महाराष्ट्र सरकार पर बनाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर की अगस्त में पुणो में हत्या कर दी गई. चार माह का समय बीतने और भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद कांग्रेस-राकांपा की सरकार ने महाराष्ट्र विधानसभा में इस विधेयक को पारित करने का आश्वासन दिया.
वर्ष 2013 के अंतिम दिनों में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने अपने गांव रालेगण सिद्धि में जनलोकपाल विधेयक को पारित करवाने के लिए अनिश्चितकालीन अनशन किया.
हजारे के सहयोगी पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल वी. के. सिंह और आप के नेता गोपाल राय के बीच गांधीवादी हजारे की मौजूदगी में हुई सार्वजनिक कहासुनी ने हजारे और उनके पूर्व सहयोगी अरविंद केजरीवाल के बीच के मतभेदों को उजागर कर दिया. अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्तारुढ गठबंधन में बड़ा दल बनने की कोशिश में राकांपा ने कांग्रेस को निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा. उसने नवंबर में मुख्यमंत्री पद पर तीन साल पूरे करने वाले पृथ्वीराज चव्हाण को खास तौर से निशाने पर लिया. इस साल का सबसे चर्चित राजनीतिक बयान पवार की ओर से आया, जिसने सत्ताधारी सहयोगियों के बीच की स्थिति को साफ कर दिया.
सितंबर में एक समारोह में पवार ने कहा था कि जब फाइलों में दस्तखत करने का समय आता है तो चव्हाण के हाथ लकवाग्रस्त हो जाते हैं. चव्हाण ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि वे ऐसे निजी प्रस्तावों पर कभी हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जो महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ हैं.
बाल ठाकरे के निधन के एक साल बाद सभी लोगों की नजरें शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के प्रदर्शन पर थी. राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना था कि उद्धव में उस उग्र रख की कमी है, जो उनके पिता के नेतृत्व में शिवसेना की पहचान थी. हालांकि उद्धव ने महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाते हुए खुद को मजबूती से पेश किया.