नयी दिल्ली : ठीक एक साल पहले 23 वर्षीय लड़की के साथ हुए क्रूर सामूहिक बलात्कार से लोगों में भड़के रोष और हजारों लोगों के सड़कों पर उतर आने के बाद संसद को नया बलात्कार-विरोधी कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा था लेकिन यदि राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा की बात की जाए तो स्थिति में ज्यादा कुछ बदलाव नहीं आया है.
हालांकि केंद्र और राज्यों की सरकारें महिलाओं की सुरक्षा सुधारने के लिए कई कदम उठाए जाने का दावा करती हैं लेकिन विशेषज्ञ और कार्यकर्ताओं को नहीं लगता कि दिल्ली में महिलाओं को सुरक्षित महसूस करवाने में कुछ खास सफलता हासिल की गई है. दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन :181: जैसे कुछ उपायों की शुरुआत की थी लेकिन बसों और ऑटो में जीपीएस सिस्टम लगाने, महिलाओं के लिए विशेष गुलाबी ऑटो लाने और यातायात व्यवस्था में सुधार लाने का वादा अभी भी कागजों में ही है.
एक कामकाजी महिला भावना टुटेजा ने कहा, ‘‘मुझे अभी भी सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करना सुरक्षित नहीं लगता. ऑटो चालक कई जगहों पर जाने से मना कर देते हैं. अभी भी मेरे इलाके में नियमित रुप से गश्त लगाती पीसीआर नहीं दिखती.’’ दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, 30 नवंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में बलात्कार के कुल 1493 मामले दर्ज किए गए थे. यह संख्या वर्ष 2012 में दर्ज हुए बलात्कारों की संख्या से दोगुनी है. उत्पीड़न के दर्ज मामले भी पांच गुना बढ़कर 3,237 हो गए. यहां तक कि 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की पीड़िता निर्भया के पिता भी इस बात पर दुख जाहिर करते हैं कि इतने ज्यादा शोरगुल के बावजूद ‘बदलाव’ नहीं आया है.
उन्होंने बताया, ‘‘उस समय बहुत ज्यादा विरोध प्रदर्शन हुए थे, कानूनों में भी बदलाव किए गए थे और पुलिस भी ज्यादा सक्रिय व चौकस हुई लेकिन क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध रक गए हैं? हर दूसरे दिन बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं की खबर आ रही है. बदलाव आखिर है कहां? मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता. क्या आपको दिखता है?’’इसी तरह के विचार जाहिर करते हुए सुमन राजपूत ने कहा, ‘‘आखिर यह किस तरह की मिसाल पेश की जा रही है, कि दोषियों को सजा सुनाई तो जाएगी लेकिन उन्हें कभी फांसी नहीं दी जाएगी. और अगर उन्हें सजा दी भी जाएगी तो वह भी वर्षों बाद. ऐसा ही तो पहले भी होता आया है. फिर हम कैसे कह सकते हैं कि ‘कुछ’ बदलाव आया है.’’केंद्र अप्रैल में एक विधेयक लेकर आया था, जिसके अनुसार बलात्कार के दोषियों को उम्रकैद और मौत की सजा का प्रावधान था. इसके अलावा तेजाब हमले, पीछा करने और अभद्र व्यवहार जैसे अपराधों के लिए भी कठोर सजाओं का प्रावधान किया गया था.
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना से पैदा हुए देशव्यापी गुस्से की पृष्ठभूमि में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक-2013 लाया गया था और इसे आपराधिक अधिनियम (संशोधन) अधिनियम 2013 का नाम दिया गया था. 19 मार्च को लोकसभा और 21 मार्च को राज्यसभा में पारित किए गए इस कानून ने 3 फरवरी को जारी किए गए अध्यादेश की जगह ले ली है.बलात्कार जैसे अपराधों के खिलाफ कड़ा भय दिखाने के लिए नया कानून कहता है कि अपराधी को न्यूनतम 20 साल की कैद की कड़ी सजा सुनाई जा सकती है और इसे उम्रकैद तक में तब्दील किया जा सकता है. यहां उम्रकैद का मतलब अपराधी की मौत तक का समय है. इस कानून ने पहली बार पीछा करने और अभद्र व्यवहार को एक से ज्यादा बार करने पर गैर-जमानती अपराध बताया है. तेजाब हमला करने वाले को 10 साल की जेल होगी.
इस मामले में लड़की के साथ किए गए ‘पाश्विक’ बर्ताव और ‘रोंगटे खड़े कर देने वाले’ तरीके से अंजाम दिए गए इस अपराध को अदालत ने दुर्लभ से दुर्लभतम बताते हुए सामूहिक बलात्कार के चार दोषियों को सितंबर में मौत की सजा सुनाई गई थी. कानून की छात्रा ज्योति भारद्वाज ने कहा, ‘‘पीड़िता के इस अकेले मामले में ही इंसाफ करने में फास्ट ट्रैक अदालत को 8 महीने लग गए जबकि ऐसे असंख्य मामले हैं, जो व्यवहारिक तौर पर उपेक्षित हो जाते हैं.’’ सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक डॉक्टर रंजना कुमारी का मानना है कि पिछले कुछ सालों में हुई इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का खामियाजा कांग्रेस सरकार को हाल के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा है.
एक अन्य महिला कार्यकर्ता कवित कृष्णन ने कहा, ‘‘मौत की सजा देने से वे लाखों महिलाएं संतुष्ट नहीं होंगी, जिन्हें रोजाना अपनी सुरक्षा और हिंसा से जुड़े मसलों से दो-चार होना पड़ता है और उन्हें इस बारे में कोई जवाब नहीं मिलता कि आखिर सरकार उनके लिए कर क्या रही है.’’ हालांकि महिला कार्यकर्ताओं के एक वर्ग का मानना है कि कुछ शुरुआत तो हुई है और आने वाले सालों में स्थिति में सुधार की काफी उम्मीद है.