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समलैंगिकता पर शीर्ष अदालत के फैसले को लेकर सांसदों को आपत्ति

नयी दिल्ली : दलगत राजनीति से उपर उठकर सांसदों ने आज उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर आपत्ति जतायी, जिसमें समलिंगी सेक्स को अपराध करार दिया गया है.जदयू नेता शिवानंद तिवारी ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के निर्णय से सहमत नहीं हूं. उच्च न्यायालय का फैसला सही और वैज्ञानिक सोच […]

नयी दिल्ली : दलगत राजनीति से उपर उठकर सांसदों ने आज उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर आपत्ति जतायी, जिसमें समलिंगी सेक्स को अपराध करार दिया गया है.जदयू नेता शिवानंद तिवारी ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के निर्णय से सहमत नहीं हूं. उच्च न्यायालय का फैसला सही और वैज्ञानिक सोच का नतीजा था. शीर्ष अदालत अपने नीचे की अदालतों के फैसले को पलट सकती लेकिन मैं नहीं मानता कि यह बेहतर फैसला है.’’ इस फैसले को निराशाजनक बताते हुए तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने कहा कि हम उदार दुनिया में जी रहे हैं और आज का फैसला निराशाजनक है. 2006 में अर्मत्य सेन, विक्रम सेठ, श्याम बेनेगल और खुद मेरे दस्तखत से एक पत्र लिखा गया.

माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह एक नई तरह का कानूनी मामला है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया. उसी के आधार पर शीर्ष अदालत ने कुछ व्यवस्था दी. इन विवाद को हल करने का जिम्मा कार्यपालिका पर डाला गया. न्यायपालिका ने चूंकि कार्यपालिका की भागीदारी मांगी है, इसलिए उन्हें फैसले का भलीभांति अध्ययन करना होगा.समलिंगियों के अधिकारों की लडाई लड रहे लोगों को बडा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जिसके तहत समलिंगी सेक्स दंडनीय अपराध है और इसके लिए आजीवन कारावास तक की सजा मिल सकती है.

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