-हरिवंश-
11 अक्तूबर को देश के एक अति विशिष्ट व्यक्ति ने ‘प्रभात खबर’ के साथ निजी बातचीत में कहा था कि कश्मीर तो अमेरिकी साजिश और अपनी अकर्मण्यता का शिकार है. अमेरिका उसे मुक्त कराने की साजिश कर चुका है. हमारी सरकार के सर्वोच्च पदों पर आसीन लोगों को इसकी सूचना है. बेनजीर अमेरिकी पिट्ठू हैं, उन्हें अमेरिका अपना इरादा बता चुका है. शीघ्र ही आप चौंकानेवाले तथ्य सुनेंगे.’
तब उम्मीद नहीं थी कि अमेरिका इस शीघ्रता से स्वघोषित पंच बन कर निर्णय सुना देगा कि कश्मीर भारत का अंग नहीं है. बहरहाल उस अति विशिष्ट व्यक्ति की निजी बात पर अविश्वास का कोई कारण नहीं था. पर महज 18 दिनों में यह भयावह कल्पना एक आकार लेगी, ऐसा भी नहीं लगता था. इस प्रामाणिक जानकारी के आधार पर ‘प्रभात खबर’ लगातार स्पष्ट तरीके से यह कहता रहा. . कश्मीर में महज पाक प्रशिक्षित उग्रवादी ही नहीं पसर चुके हैं, बल्कि अमेरिका की रुचि बढ़ गयी है. पाकिस्तान तो अमेरिकी मोहरा है.‘ 27 अक्तूबर के संपादकीय (पाकिस्तान ग्रंथि, पेज चार) में ‘प्रभात खबर’ ने लिखा, ‘अमेरिका बेनजीर भुट्टो को समर्थन दे रहा है. पाकिस्तान उसका मोहरा है.’
रूस के बिखर जाने के बाद अमेरिका पूरी दुनिया का स्वघोषित शहंशाह बन गया है. उसके राह में दो रोड़े हैं, भारत और चीन. मौजूदा स्वरूप में भारत, अमेरिका के लिए चुनौती नहीं है. पर भारत के बेहतर ‘भविष्य’ का आकलन दुनिया के विशेषज्ञ करते हैं. इस कारण भविष्य की संभावित ताकत को छिन्न-भिन्न करने का अमेरिकी संकल्प ‘कश्मीर’ पर उसके बयान से स्पष्ट होता है. आज चीन से ही अमेरिका खौफ खाता है. कश्मीर अगर अमेरिकी इच्छानुसार मुक्त होता है, तो वह अमेरिका खौफ खाता है. कश्मीर अगर अमेरिकी इच्छानुसार मुक्त होता है, तो वह अमेरिकी पिट्ठू ही होगा.
वहां से चीन भी अमेरिकी मिसाइल के दायरे में होगा अगर सऊदी अरब में अमेरिकी मिसाइलें नहीं होतीं, तो इराक पर इतनी आसानी से फतह रसायन लेकर इराक जा रहा था. बीच समुद्र से ही अमेरिकी सैनिकों ने उसे लौटा दिया. भारत इस दादागिरी का विरोध तक न कर सका. न देश के किसी हिस्से-मीडिया में इस प्रकरण की चर्चा हुई. इसी घटना के आस-पास एक चीनी समुद्री जहाज के साथ भी अमेरिकी नौ सैनिकों ने यही बरताव किया, तो चीन ने न सिर्फ कड़ा विरोध किया, बल्कि हरजाने की मांग की है.
जो अमेरिका, ईरान, इराक, लीबिया आदि को कुचलना चाहता है, ताकि घोषित रूप से इसलाम को कमजोर करने की उसका लक्ष्य पूरा हो, वह क्या पाकिस्तान या आजाद कश्मीर के लोगों का खैरख्वाह साबित होगा?
एक तथ्य निश्चित है कि कश्मीर षड़यंत्र के तहत भारत से अलग कराया गया, तो यह मुल्क एक नहीं रह पायेगा. भारत के बिखरने की यह शुरुआत होगी.जो पुरुष-समाज-देश अपना स्वाभिमान खो देते हैं, वे चलते-फिरते शव हैं. भारत की आजादी लंबे संघर्ष-त्याग-बलिदान से अर्जित हुई है. नौकरशाही-पुलिस-प्रशासन के लोग आज अपने ही देश के असहाय-गरीब और पिछड़ों पर जुल्म करने में अपना शौर्य दिखाते हैं. इनका भी इस देश-मिट्टी से कोई सरोकार नहीं. आज अमेरिका सोचता है कि फिलीस्तिीन-इस्राइल विवाद सुलझाने के बाद ‘कश्मीर’ का कथित मामला सुलझाकर वह स्वयंभू बादशाह बन जायेगा.
पर क्या 90 करोड़ लोगों का यह देश इतना असहाय हो गया है? कुछ ही वर्षों पूर्व जिस देश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अमेरिका के सातवें बेड़े को लौटने को मजबूर कर दिया, दियगोगार्सिया में अड्डा नहीं बनने दिया, वह देश इतना शीघ्र झुकेगा? महज एक करोड़ वियतनामी लोगों ने 1967 में अमेरिका को वह सबक सिखाया, जिसके जख्म आज तक अमेरिकी समाज में गहरे हैं, उस एशियाई देश से क्या 90 करोड़ भारतीय सबक नहीं लेंगे?