-हरिवंश-
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बिहार और गुजरात-महाराष्ट्र का फर्क
-हरिवंश- 14 जनवरी, मुंबई : गिरगाम पैसेंजर मुंबई सेंट्रल से रात पौने ग्यारह में खुलती है सूरत होते हुए जाती है. भीड़ रहती है, पर बिहार-उत्तरप्रदेश जैसी स्थिति नहीं. बिना आरक्षण के जबरन लोग नहीं चढ़ते. इसी ट्रेन से गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री छबीलदास मेहता यात्रा कर रहे हैं. डूमस (सूरत […]
14 जनवरी, मुंबई : गिरगाम पैसेंजर मुंबई सेंट्रल से रात पौने ग्यारह में खुलती है सूरत होते हुए जाती है. भीड़ रहती है, पर बिहार-उत्तरप्रदेश जैसी स्थिति नहीं. बिना आरक्षण के जबरन लोग नहीं चढ़ते. इसी ट्रेन से गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री छबीलदास मेहता यात्रा कर रहे हैं. डूमस (सूरत के पास) ‘संवाद’ में शरीक होने जा रहे हैं. साथ में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं. अपना सामान अपने आप लिये. हजारों सामान्य यात्रियों में से एक. खद्दर का पैंट-शर्ट पहने हुए. जो उन्हें नहीं जानता, वह उन्हें देख कर देश के करोड़ों लोगों के बीच का ही सामान्य व्यक्ति मानता. अगले दिन डूमस में उनका परिचय पाकर स्तब्धता का बोध भी हुआ.
क्या बिहार-उत्तर प्रदेश में कोई पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद, अकेले, अपना सामान उठाये पैसेंजर ट्रेन में यात्रा करता है? एक सामान्य यात्री की तरह यात्रा करता है? बगैर सुरक्षा गार्ड के वह डग भरता है? सामान्य ट्रेन-बस में यात्रा करता है. ट्रेनों-बसों में वह सहयात्रियों से सामान्य रूप में पेश आता है? बल्कि राजनीति में पद पाते ही वह ‘हवाई यात्री’ बन जाता है. धरती से उसका संपर्क टूट जाता है. एकाध अपवाद हैं, पर बहुसंख्यक राजनीतिज्ञों (चाहे वे जिस दल के हों) का सरोकार समान है. अति विशिष्ट बनना, धनार्जन, अपराध, आतंक की सीढ़ी चढ़,सामान्य लोगों से कट जाना.
‘डूमस संवाद’ में गुजरात राजनीति के अनेक विशिष्ट लोगों से मुलाकात होती है. गुजरात की राजनीति करते हुए जिन लोगों ने अपनी प्रतिभा, काम और दृष्टि से राष्ट्रीय पहचान बनायी, वे भी आयें. प्रो जसवंत मेहता मिलते हैं. गुजरात के पूर्व वित्त मंत्री, पूर्व सांसद. अर्थशास्त्र के जानकार. वह बताने में भी संकोच करते हैं कि गुजरात राजनीति में उनकी अलग पहचान रही है. पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के भतीजे भी डूमस संवाद में आये. 80 वर्ष से ऊपर की उम्र, गांधीवादी. गुजराती पररावा. उनकी पूरी चिंता का विषय किसानों की मौजूदा स्थिति है. गांवों-शहरों के बीच बढ़ती आर्थिक विषमता का आंकड़ेवार वह हवाला देते हैं.
दूसरे लोग उनकी ‘विशिष्टता’ का परिचय कराते हैं. पर बिहार से गये व्यक्ति के लिए असामान्य बोध यह है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री, एक पूर्व वित्त मंत्री, मोरारजी भाई के विद्वान भतीजे यानी गुजरात के विशिष्ट लोग आज भी सामान्य समाज के अंग हैं. बिहार में इनके जैसे पद पानेवाले उसी क्षण विशिष्ट बन जाते हैं.
गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल या दक्षिण के राज्यों में जो सामादिक मूल्य, मर्यादा और मानवीय बोध हैं, वे बिहार-उत्तर प्रदेश में क्यों विकसित नहीं हो पाये? क्या इन राज्यों की आर्थिक प्रगति इसलिए अवरुद्ध है कि यहां सांस्कृतिक मूल्यबोध विकसित नहीं हुए? चिंतक कृष्णनाथ अक्सर सवाल उठाते हैं कि बिहार के आम जीवन में जो आक्रामकता, तनाव, आक्रोश, द्वेष, आग औैर असृजनशीलता है.
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