नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सीबीआई नियमावली के तहत निर्धारित विशेष प्रक्रिया विधान नहीं है क्योंकि इसे विधायिका ने कानून का रुप नहीं दिया है और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मामले दर्ज करते वक्त पुलिस को इसका पालन नहीं करना है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई का गठन एक विशेष अधिनियम के तहत किया गया है और उसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 के तहत शक्तियां हासिल हैं. शीर्ष अदालत को एजेंसी को स्थापित किए जाने की संवैधानिक वैधता की पड़ताल करनी है. हाल में ही गौहाटी उच्च न्यायालय ने सीबीआई को अवैध घोषित कर दिया था.
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कुछ राज्य सरकारों की इस दलील को खारिज कर दिया कि पुलिस को भी प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच करने की अनुमति दी जाए. सीबीआई प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच की प्रक्रिया अपनाती है.
पीठ ने कहा, ‘‘यह सही है कि प्राथमिक जांच की अवधारणा सीबीआई की अपराध नियमावली के अध्याय नौ में है. हालांकि, यह अपराध नियमावली एक विधान नहीं है और इसे विधायिका ने नहीं बनाया है. ये प्रशासनिक आदेश हैं जिसे अधिकारियों के आंतरिक मार्गदर्शन के लिए जारी किया गया है. यह दंड प्रक्रिया संहिता की जगह नहीं ले सकता.’‘ उसने कहा कि संहिता में खुद इसके विपरीत किसी तरह के संकेत की अनुपस्थिति में सीबीआई अपराध नियमावली के प्रावधानों पर प्राथमिक जांच करने की अवधारणा को लाने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता.
पीठ ने कहा, ‘‘इस मोड़ पर यह कहना भी प्रासंगिक है कि सीबीआई का गठन विशेष अधिनियम दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 के तहत किया गया है और वह जांच करने की शक्ति इसी अधिनियम से हासिल करती है.’‘पीठ ने कहा, ‘‘संहिता में उपरोक्त विशेष प्रावधानों के मद्देनजर डीएसपीई अधिनियम के तहत सीबीआई की शक्तियों की बराबरी संहिता के तहत नियमित राज्य पुलिस की शक्तियों से नहीं की जा सकती.’‘